श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी बावीस संप्रदाय जैन संघ ट्रस्ट, गणेश बाग श्री संघ के तत्वावधान में एवं शासन गौरव महासाध्वी पूज्या डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज, पूज्या श्री पुनितज्योति जी महाराज, पूज्या श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज के पावन सानिध्य में रविवार प्रातः दिनांक 29 अगस्त 2021 को श्री गुरु गणेश जैन स्थानक, गणेश बाग में कृष्ण जन्माष्टमी मनाया गया।
साध्वी श्री रुचिकाश्री जी महाराज ने अपने प्रवचन में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर फ़रमाया कि जिसे केवल जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। उनके माता पिता वसुदेव और देवकी जी के विवाह के समय मामा कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुँचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी जिसमें बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र कंस को मारेगा।
अर्थात् यह होना पहले से ही निश्चित था अतः वसुदेव और देवकी को जेल में रखने के बावजूद कंस कृष्ण जी को नहीं मार पाया। जन्माष्टमी पर एकल या समूह नृत्य और नाटक कार्यक्रमों के रूप में व्यक्त किया जाता है, जिसमें कृष्ण से संबंधित रचनाएं गाई जाती हैं। कृष्ण के बचपन की शरारतें विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। आज इस विशेष अवसर पर गणेश बाग में बच्चों ने निभाए कृष्ण परिवार के विभिन्न किरदार पारंपरिक वेशभूषा में एवं प्रत्येक बालक बालिकाएं द्वारा सुन्दर प्रस्तुति रहा आज का प्रमुख आकर्षण, बच्चों ने हांडी घुमाई जिसमें विभिन्न छोटे संकल्प थे जिन्हें बच्चों ने स्वीकार किया और उनका पालन करने के लिए सहमत हुए।
साध्वी श्री रुचिकाश्री जी महाराज ने फ़रमाया की जैन शास्त्रों में कृष्ण अतिविशिष्ट पुरुष थे। तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान् को आराध्य के रूप में स्वीकारते थे। आपश्री ने प्रेरणा दी आज भौतिकवाद के इस युग में हर व्यक्ति यह मानता है कि यदि तुम मुझे याद नही करते तो मैं भी तुम्हें याद क्यों करूं ऐसे में आज समाज के लिए रिश्तों के मायने भी बदलते जा रहे है, अगर आपके रिश्तों में भी इसी तरह से कड़वाहट घुलती जा रही हैं तो सचेत होने की जरूरत है और आवश्यकता है रिश्तों को संभालने की।
ये बात तो विख्यात है कि भगवान श्री कृष्ण के लिए सुदामा की दोस्ती के क्या मायने थे। सुदामा और श्री कृष्ण की दोस्ती ऊंच नीच, अमीरी गरीबी, छोटे बड़े के भेद को समाप्त करती है और हमें दोस्ती जैसे रिश्ते की अहमियत समझाती है।
श्री कृष्ण का लालन-पालन नंदबाबा और यशोदा मैया के आंगन में हुआ था परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने देवकी और वासुदेव जी को भी अपने जीवन में उतना ही महत्व दिया और दोनों ही जगह एक आदर्श बेटा बनकर अपना कर्तव्य निभाया। इस तरह कृष्ण की जीवनी से हमें माता-पिता के रिश्ते की अहमियत पता चलती है । श्री कृष्ण अपने जीवन में जिन भी संतों से मिले उनका उन्होंने हमेशा आदर किया।
साध्वी श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज ने सुखविपाक सूत्र का दसवां अध्याय का वाचन किया । साध्वी जी ने फ़रमाया कि श्री कृष्ण ने गीता में कर्मयोग के जो सिद्धांत दिए, वही प्रबंधन की शिक्षा में निहित हैं। अपने लक्ष्य पर डटे रहो। बच्चो को प्रेरित करते हुए अपने मधुर स्वर से भक्ति भजन की प्रस्तुति की।
धर्म सभा का संचालन करते हुए सुनील सांखला जैन ने बताया की जैन धर्म में वर्णन आता है कि श्री कृष्ण के द्वारा उत्कृष्ट धर्म दलाली की, उनकी भावना रही मेरे से तो त्याग नहीं होता मगर मैं लोगों को त्याग के मार्ग पर आरूढ़ करू। इसके कारण उन्होंने तीर्थंकर नाम गोत्र का उपार्जन किया। श्री कृष्ण नौवें अंतिम वासुदेव है और आने वाली चौबीसी में तीर्थंकर है।
आज के धर्म सभा में गणेश बाग श्री संघ के पदाधिकारी, सदस्य सहित बड़ी संख्या में शहर के विभिन्न श्री संघ के पदाधिकारी, श्रद्धालुओं एवं बच्चों की उपस्थिति रही। श्री संघ की और से सभी बच्चों को पुरुस्कृत किया गया एवं अभिनंदन किया गया। सभी का स्वागत एवं संचालन सुनील सांखला जैन ने किया एवं सभी के प्रति आभार व्यक्त किये सम्पतराज मांडोत ने किया।