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श्री कृष्ण तो मैत्री भाव के प्रतीक है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया

श्री कृष्ण तो मैत्री भाव के प्रतीक है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया

हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान हैl वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं, वह इस प्रकार हैंl

बंधुओं जैसे कि सखा हो तो कृष्ण सुदामा जैसा जिस प्रकार की सुनिए जीवन में आप मित्र बनना चाहते हैं तो अपने से बेहतर लोगों को ही मित्र बनाएंl अगर कॉलेज में पढ़ते हैं युवक यूवतिया को दोस्त बनाएं पर अपनी सीमाएं जरूर रखें दोस्ती के बीच अगर आप सीमाएं नहीं रखते हैं तो यह मर्यादा मित्रता मित्र और आपके अपने घर दोनों के लिए विनाश का कारण बन सकता हैl ढेर सारे मित्रों को एकत्र करने का कोई औचित्य नहीं है अगर वह आपके विकास में सहायक ना बन सकेl

आपको पता है कि अर्जुन और श्री कृष्णा में अच्छी मित्रता थी यदि गुरु शिष्य का भाव था भगवान भक्त का भाव था इसकी अतिरिक्त तीसरा भाव थाl शखा भाई मित्रता का भाव जिसके कारण कृष्ण जैसे महापुरुष भी अपने सखा भाव को रखने के लिए अर्जुन के रथ को हाथ में के लिए सारथी बन जाते हैंl मित्रता का आदेश है मित्रता का आदर्श कृष्ण और अर्जुन का परस्पर व्यवहार एक नुस्खा अजमेर की कल तक जो आपका मित्र था जिसे आज भी आप अपना मित्र मानते हैंl  सहयोग की बात है वह कलेक्टर एसपी या इसी तरह की किसी उच्च पद पर पद्दस्त हो गया आप उससे मिलने जाएंगे आपको एक ही में पता लग जाएगाl

वह कैसा आदमी है और उसके साथ कैसे मित्रता थे आपके मित्रता का सारा अहंकार सारा भाव 2 मिनट में खंडित हो जाएगाl जब आप उसके पास जाएंगे मित्र तो कृष्ण जैसे ही हो सकते हैं सुदामा जी से गरीब ब्राह्मण सका जब उनके द्वारा पर आता है तो कृष्ण मित्रता के भाव के भाव को रखने के लिए कच्चा सत्तू भी खा लेते हैंl जब सुदामा वापस अपने घर पहुंचता है तो आश्चर्य चकित रह जाता है टूटे-फूटे कपड़े लेकर झोपड़ी की जगह आलीशान महल खड़ा हैl

एक मैत्री धन्य होती है जहां एक और दुनिया का मन संपन्न अधिपति है दूसरी और व्यक्ति हैंl जिसके पास खाने को दान नहीं पहनने को कपड़ा नहीं सुदामा जब कृष्ण के द्वार पर जाता है तो कृष्णा यह नहीं कहते हैं कि मैं तुम्हें नहीं पहचाना उसका परिचय नहीं पूछते हैं नहीं कहते हैं कभी मिले तो प्रसाद याद नहीं आ रहा बल्कि उसके पांव का प्रचलन करते हैंl मित्र का स्वागत करते हैं उसकी गरीबी दूर करते हैं सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र भी अपने बराबरी का बनाने का प्रयास करें जिनकी चरण सदा मां लक्ष्मी कैटल में रहते हैंl वह प्रभु कृष्ण रूप में गांववालों के संग मैत्री भाव में कांटों पर चलते हुए नजर आते हैं श्री कृष्ण तो मैत्री भाव के प्रतीक हैl

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