गुरुवार का राजेन्द्र भवन मे प्रवचन्
विश्व पूज्यनीय प्रभु श्री मद् विजय् राजेन्द्रसुरि महाराज के शिष्यरत्न राष्ट्रसन्त्, दीक्षादानेशवेरी श्री मद् विज्य जयंतसेन सुरिश्ववरजी महाराज के कृपापात्र सुशिष्यरत्नश्रुतप्रभावक मुनिराजश्री डॉ वैभवरत्न विजयजी महाराजा केः प्रवचन अंश।
श्री अभिधान राजेंद्र कोष के प्रथम भाग में 7००० शब्द सिर्फ ‘अ’ अक्षर के ऊपर है, इसलिए ये ज्ञान का महासागर है।
परम पूज्य श्रुतप्रभावक मुनिराज श्री वैभवरत्न महाराजा इस अमरकृती को सभी लोग सरलता से समज सके इसलिए अती सरल शैली मे अनुवादन कार्य कर रहे हे जिसके प्रथम भाग में ‘अ’ अक्षर ऊपर 4००० से भी ज्यादा शब्द हे और इस ग्रंथ मे 25 से भी ज्यादा गच्छाधीपति और आचार्य भगवन्तो की महान प्रसतावना है। विश्व के सभी धर्मो का मूल ज्ञान ही है , कयोंकि ज्ञान शाश्वत है और अनंत है। जहाँ जहाँ समयकज्ञान है, वहाँ वहाँ दोष, पाप, गलतियां असम्भव है ।
परमात्मा पद पाने का समयक मार्ग और आत्म को सुवर्ण जैसा शुद्ध बनाने का ज्ञान यानि श्री अभिधान राजेंद्र कोष है। श्री अभिधान राजेंद्र कोष की अमरकृति हजारो, लाखो, करोड़ो सालों तक अमर रहेगी ही कयोंकि ये अनंत ज्ञानियों का ज्ञानामृृत है।
जिस भक्त के पास प्रभुवीर का सम्यक ज्ञान और गुरुदेव श्रीमद विजय राजेंद्रसूरीजी की समयक श्रद्धा का अनुभव है, वो भक्त स्वयं के जीवन में कभी दुःखी हो ही सकता। ज्ञानी भगवन्त जगत के सभी जीवो को दोष पापों से मुक्त होने के लिए पुरुषार्थ करते ही है।
नई ऊर्जा का संचार, नई दिशा में गमन, नई दुनिया में प्रवेश, नई सोच का आगमन, घर में समाधि, सुख की प्राप्ति यानि “साक्षात्कार वर्षावास”। सम्यक ज्ञान की साधना से और केवली प्ररूपित धर्म की अखंड श्रद्धा से जीवन में हरपल परम सुख और श्रेष्ठ समाधि प्रगत होती ही है।