कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज शुक्रवार तारीख 21 अक्तूबर 2022 को परम पूज्य सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में मृदुभाषी श्रीसाधना जी मसा ने उत्तराध्ययन सूत्र फरमाया!
देवलोक में शकेन्द्र देव जब परमात्मा की स्तुति करते हैं, तारीफ करते हैं तब संगम देव ईर्ष्या से उपालंभ देते हुए परमात्मा के ध्यान को भंग करने के उद्देश्य से आते हैं! संगम देव एक ही रात्रि में धूल उडाकर, वज्र मुखी चींटियों से आक्रमण कराके, मच्छरों से, दीमकों से, बिच्छुओं से कटवाकर, नेवलों से, चूहों से नोचवाकर, हाथी से सूंड मे लपेटकर फिंकवाकर थक जाता है! लेकिन हार नही मानता और 13वें उपसर्ग से धोखे से परमात्मा का ध्यान भंग करना चाहता है!
13वें उपसर्ग में माता त्रिशला पिता सिद्धार्थ बनकर, 14वें उपसर्ग में पैरों पर हांडी रखकर आग लगाकर,15वें उपसर्ग में शिकारी बनकर पक्षियों द्वारा उत्पीड़न, कलंकानी वायू के प्रभाव से पटकना, कालचक्र के प्रभाव से घुटनों तक परमात्मा का पृथ्वी में ध़स जाना, विमान से देव बनकर आना और वरदान मांगने का नाटक करना और बीसवें उपसर्ग मे सुंदर अप्सराओं को भेजकर ध्यान भंग करने की प्रक्रिया करना, इत्यादि शामिल हैं! लेकिन परमात्मा इतनी सारी पीड़ा से भी विचलित नही होते और शरीर के छलनी होने के बाद भी दूसरे दिन मुस्कुराते नजर आते हैं!
हताश लेकिन हठी संगम देव अपने मायावी बल से परमात्मा को राजा के शस्त्र चोरी के इल्ज़ाम में फंसा देता है! लेकिन उनकी शूली ही उनका सिंहासन बन जाता है! थका हारा देव अपनी अंतिम कोशिश परमात्मा के आहार विहार में करता है जिसकी वजह से प्रभू का छ: महीने तक पारणा नही होता! अंत में प्रभु की आंखों में आसूं आ जाते कि संगम देव ने अपने जीवन का उद्धार नही किया और यह जानकर देव लज्जित होकर वापस देवलोक चले जाता है, जहां से शकेन्द्र देव उसे दुष्ट कहकर बाहर निकाल देते हैं!