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श्रीपाल नरेश की भ्रमण गाथा

श्रीपाल नरेश की भ्रमण गाथा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज मंगलवार तारीख 4अक्तूबर को परम पूज्य सुधा कवर जी मसा आदि ठाणा 5 ने नव पद ओली की चौथे दिन की आराधना करते हुए फरमाया कि जब रत्नद्वीप पर सभी व्यापारी अपना सामान बेचने के लिए बाजार में चले गए तब श्रीपाल नरेश अपनी पत्नी मदन सेना के साथ समुद्री किनारे पर नाटक मंडली का आनंद लेते हैं! तभी अचानक जोर जोर से बचाओ बचाओ की चीख-पुकार सुनाई देती है! श्रीपाल नरेश देखते हैं कि एक मदोन्मत हाथी अपने चारों तरफ बर्बादी फैला रहा था सब कुछ तहस-नहस कर रहा था!

श्रीपाल तत्काल उस हाथी के सामने जाकर खड़े हो जाते हैं और नवपद ओली की आराधना करते हैं और उनके धर्म प्रताप से हाथी शांत हो जाता है तब श्रीपाल उसके मस्तक पर हाथ रखते हैं और हाथी पूरी तरह से उनके वश में हो जाता है! यह दृश्य देखकर वहां की प्रजा आश्चर्यचकित हो जाती है और जैसे ही वहां के राजा कनकसेतु के पास समाचार पहुंचते हैं तो उनके सैनिक वहां पर आकर श्रीपाल नरेश से विनती करते हैं कि वे राजमहल चलें और महाराज कनकसेतु का आतिथ्य सत्कार स्वीकार करें! श्रीपाल नरेश के रूप लावण्य को देखकर रत्न द्वीप का महाराजा बहुत प्रसन्न होता है और कुंवर साहब कहकर उन्हें संबोधित करता है और अपनी पुत्री का विवाह उनके साथ करने का प्रस्ताव रखता है! हैरान श्रीपाल नरेश ने जब पूछा कि आप मुझे जानते नहीं पहचानते नहीं, मेरे वंशज का आपको पता नहीं फिर आप कैसे ऐसा प्रस्ताव रख सकते हो..?

तब वहां के महाराजा कनकसेतु फरमाते हैं कि उनकी पूरी आस्था एक मुनिराज में है जिन्होंने बताया था कि जो व्यक्ति इस पागल हाथी को अपने वश में करेगा वही उनकी राजकुमारी का पति बनेगा, और आपके चेहरे को देखते ही मालूम पड़ता है आप बहुत अच्छे और ऊंचे खानदान के हो! इसके बाद उन्होंने अपनी पुत्री मंजूषा का विवाह श्रीपाल नरेश से कर दिया!

एक दिन मुनिराज के दर्शन हेतु राजा कनक सेतु, श्रीपाल नरेश और मंजूषा सभी धर्म सभा में विराजमान थे तभी नगर के कोतवाल राजा से कहते हैं कि कोई परदेसी व्यापारी है जो हमारे राज्य को कर (टेक्स) देने से इनकार कर रहा है! वह चोर है हम उस चोर को पकड़ कर लाए हैं यह सुनते ही राजा उसे दण्डित करने का हुक्म देता है! तभी नरेश श्रीपाल कहते हैं कि आप अभी धर्म सभा में है! आप उसे राजसभा में बुलाकर उस अपराधी की बात सुनकर बाद में उचित निर्णय लीजिए! राजा को श्रीपाल नरेश की सराहना करते हैं और राज्यसभा में जब उस चोर को प्रस्तुत किया जाता है तब नरेश श्रीपाल कहते हैं कि यह तो धवल सेठ है और मेरे पिता तुल्य है!उसके बाद वहां के महाराजा ने उनको बन्धन मुक्त किया उनको मान सम्मान भी दिया! कुछ दिनों बाद सभी व्यापारी आकर कहते हैं कि उनका पूरा माल बिक गया है और उन्होंने नया माल भी खरीद लिया है इसलिए अब उन्हें अपने देश की तरफ भ्रमण करना चाहिए!

श्रीपाल नरेश और धवल सेठ भी वहां के महाराजा कनक सेतु से विदाई मांगते हैं और राजा भी अपनी बेटी और दामाद को भारी मन से बहुत सारी हिदायतें और आभूषण देकर विदा करते हैं! समुद्री जहाज में यात्रा करते समय श्रीपाल नरेश अपना पूरा परिचय मंजूषा को देते हैं और पूरी यात्रा का विवरण बताते हैं तब दोनों रानियां बहुत खुश हो जाती है! इधर धवल सेठ सोचता है कि श्रीपाल नरेश जिसके पास कुछ भी नहीं था आज 250 जहाजों का मालिक और 2 रूपवती रानियां है और ईर्ष्या वश श्रीपाल को मारकर दोनों रानियों को और उसकी धन संपदा को हासिल करना चाहता है!

धवल सेठ अपने चार मित्रों से अपने मन की बात करता है और उसके इस षड्यंत्र को 3 मित्र सिरे से नकार देते हैं, उसे समझाते हैं कि जिस श्रीपाल नरेश ने तुम्हारी जान बचाई तुम्हारे अटके हुए जहाजों को निकाला तुम उसी का बुरा सोचते हो..? ऐसा करने पर परिणाम अच्छा नहीं होगा और वह चले जाते हैं! एक मित्र उस सेठ का साथ देता है और उसे सलाह देता है कि उसके आचार विचार और दोस्ती श्रीपाल नरेश के साथ अत्यंत विश्वसनीय हो! पूरे विश्वास में रखकर ही धोखा दिया जा सकता है! ध व ल सेठ भी श्रीपाल नरेश के समक्ष उनके पराक्रम की प्रशंसा करता है!

एक दिन मौका देखकर श्रीपाल नरेश को धोखे से समुद्र में फिकवा देता है! श्रीपाल नरेश गिरते समय नवपद ओली का ध्यान करते हैं और वे बच जाते हैं और वहां पर एक द्वीप पर पहुंच जाते हैं और उन्हें समुद्र के किनारे चंपा पेड़ के नीचे निद्रा आ जाती है! जब वह जागते हैं तो अपने पास बहुत से लोगों के साथ वहां के सैनिकों को भी देखते हैं जो उनसे आग्रह करते हैं और उन्हें राजमहल लेकर जाते हैं! वहां के राजा पशु पाल अपनी पुत्री गुणमाला का विवाह श्रीपाल नरेश से करने के लिए आतुर रहते हैं और पूरा वृतांत सुनाते हैं कि एक ज्योतिष ने उनकी कन्या के लिए योग्य वर की भविष्यवाणी जैसे की थी वैसे ही श्रीपाल नरेश को समुद्र के किनारे चंपा पेड़ के नीचे सोया हुआ पाया!

श्रीपाल नरेश अपनी किस्मत पर मुस्कुराते हैं और विवाह कर लेते हैं! एक दिन उनकी पत्नी गुणमाला के पूछने पर चंपा नगरी का राजकुमार उज्जैन नगरी की मैना सुंदरी के साथ विवाह से लगाकर अब तक का सारा सच बता देते हैं! सच जानकर गुणमाला बहुत खुश होती है और अपनी किस्मत पर नाज़ करती है ! उधर धवल सेठ श्रीपाल नरेश के समुद्र में गिरते ही हाहाकार मचा कर बहुत बड़ा नाटक करके सब को विश्वास दिलाता है कि पैर फिसल कर नरेश श्रीपाल समुद्र में गिर गए!

समाचार सुनकर दोनों राजकुमारियां मूर्छित हो जाती है और धवल सेठ उन्हें झूठी दिलासा देते हैं कि जो होना था सो हो गया, अब अपने आप को दुखी मत करें! 2 दिन के बाद धवल सेठ दोनों राजकुमारियों के पास अपनी दासियों को भेजता है कि श्रीपाल धवल सेठ का सेवक था! अब आप धवल सेठ को स्वीकार कर लीजिए और उनसे शादी कर लीजिए! दोनों रानियों की फटकार से दासिया भाग जाती है और कुछ दिनों के बाद धवल सेठ खुद राजकुमारियों के पास आता है और घुमा फिरा कर वही बात रख देता है! दोनों राजकुमारियों के प्रचंड विरोध के बाद भी सेठ अपनी जिद पर ही अडा रहता है।

इधर दोनों राजकुमारियां नवपद का जाप करना शुरू कर देती है और उस जाप के के प्रताप से बादल गरजने लगते हैं, समुद्र में तूफान आ जाता है और घनघोर अंधेरा छा जाता है! तब समुद्र के रक्षक देव और चक्रेश्वरी देवी दोनों राजकुमारियों को दर्शन देते है और कहते हैं कि उनका पति श्रीपाल नरेश जिंदा है और बहुत शीघ्र ही उनका पुनर्मिलन होगा!
क्रमशः

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