कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज शनिवार तारीख 8 अक्टूबर को परम पूज्य सुधा कंवर जी मसा आदि ठाणा 5 नवपद ओली के आठवें दिन श्रीपाल मैना सुंदरी की कथा की वाचना करते हुए फरमाया की सम्यक ज्ञान सम्यक दर्शन और सम्यक चारित्र हमारे जीवन का अमूल्य हिस्सा है! जहां पर कर्मों के क्षय होने की प्रक्रिया शुरू होती है उसे ही चारित्र कहते हैं!
नवा पद ओली की महिमा को उजागर करने वाले श्रीपाल नरेश रात्रि में मग्न हुए और उन्हें मैना सुंदरी के साथ किया हुआ वादा याद आया जो 12 वर्ष का था! चिंता ग्रस्त श्रीपाल नरेश को देखकर तीनों रानियों ने जब कारण पूछा तो श्रीपाल नरेश ने सारी बात बता दी और यह भी बता दिया कि सही दिन पर ना पहुंचने पर मैना सुंदरी दीक्षा अंगीकार कर लेगी! तत्पश्चात सभी ने समय की गरिमा को समझ कर वहां से प्रस्थान कर दिया!
वे जिस देश से भी या नगरी से भी गुजरते उस देश के राजा उनका आदर सत्कार करते! लेकिन जब सुपर नगरी पहुंचे श्रीपाल नरेश तब वहां के राजा उनका आदर सत्कार करने के लिए वहां पर नहीं आए! श्रीपाल नरेश ने जब पूछताछ की तो पता चला कि वहां के राजा की पुत्री तिलक सुंदरी को एक सर्प ने डस लिया है और सारे उपाय और उपचार अब तक निर्थरक रहे हैं और उसे मृत घोषित करके शमशान ले जाया गया है!
श्रीपाल नरेश तुरंत शमशान पहुंच जाते हैं और अनुरोध करते हैं कि तिलक सुंदरी को चिता से उठाकर नीचे रखा जाए! इसके बाद श्रीपाल नवपद ओली की आराधना करते है! विमलेश देव द्वारा दिए गए हार के चौथे प्रभाव से,जो हर विष को निष्फल कर देता है, कपिल सुंदरी को होश आ जाता और यह बात वहां उपस्थित सभी लोगों के लिए कोई चमत्कार से कम नहीं होती है!
वहां के राजा महासेन अच्छी तरह से भांप लेते हैं कि श्रीपाल नरेश कोई देवपुत्र से कम नहीं है और अपनी कन्या के लिए योग्य वर समझकर श्रीपाल नरेश के मना करने के बाद भी आग्रह पूर्वक राजमहल में ले जाकर उनकी शादी कपिल सुंदरी से करवा देते हैं! मैना सुंदरी का वादा याद आते ही सभी रानियों और सैन्य बल के साथ श्रीपाल नरेश फिर प्रस्थान कर देते हैं!
सप्तमी के दिन श्रीपाल नरेश उज्जैन पहुंच जाते हैं! उसके पहले उज्जैन के राजा और मैना सुंदरी के पिता को समाचार मिलते हैं कि बहुत बड़ा पराक्रमी योद्धा राजा उनके राज्य पर आक्रमण करने के इरादे से आ रहा है तो वे सभी खाने-पीने की सामग्री एवं आवश्यक वस्तुएं नगर के अंदर लेकर सभी दरवाजे बंद करवा देते हैं! इधर श्रीपाल नरेश की माता एवं मैना सुंदरी चिंतित हो जाती है कि अभी तक श्रीपाल नरेश का कोई पता नहीं और दुश्मन की सेना ने चारों तरफ से नगर को घेर लिया है!
तभी श्रीपाल नरेश हार के प्रभाव से राज महल में पहुंच जाते हैं और माता कमल प्रभा और पत्नी मैना सुंदरी के वार्तालाप को सुनते हुए माताजी को पुकारते हैं! श्रीपाल की आवाज सुनकर उनकी माता ने द्वार खोला और श्रीपाल को सामने देखते ही उसका हृदय पुलकित हो जाता है श्रीपाल नरेश माता के चरणों में और मैना सुंदरी श्रीपाल के चरणों में वंदन नमस्कार करते हैं!
इसके बाद तुरंत श्रीपाल नरेश अपनी माता जी को कंधे पर बिठाकर एवं अपनी पत्नी मैना सुंदरी का हाथ पकड़ कर चलते हैं और वहीं पहुंच जाते हैं नगर के बाहर जहां पर उनकी विशाल सेना एवं सभी रानियां उनकी प्रतीक्षा करते रहते हैं! श्रीपाल की सभी रानियां उनके माता जी एवं मैना सुंदरी के चरण स्पर्श करते हैं!
क्रमशः
आज सुधा कवर जी म सा ने मेवाड संघ शिरोमणि श्री अंबालाल जी महाराज साहब की सुशिष्या सरलमना मधुर गायिका पूज्य श्री राजमती मसा के अकस्मात देवलोक गमन पर शोक जताया एवं दिवंगत आत्मा शाशवत सुखमय होकर मोक्ष को प्राप्त करें इसी मंगल भावना के साथ चार चार लोगस्स का ध्यान कराया! धर्म सभा का संचालन मंत्री जी देवी चंद जी बरलोटा ने किया!