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श्रीपाल की विदेश यात्रा कथा

श्रीपाल की विदेश यात्रा कथा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ जैन भवन के प्रांगण में साध्वी सुधाकंवर ने श्रध्दालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि विदेश जाकर अपनी पहचान बनाने का विचार आते ही श्रीपाल अपने ससुर से आज्ञा लेकर कूच कर देते हैं! रास्ते में उन्हें विद्याधर से दो विधाएं प्राप्त होती है और उसके बाद में कनक रसायनों का प्रयोग कर रहे एक व्यक्ति की सहायता करते हैं जो सोने को बनाने का प्रयोग कर रहा था! प्रयोग सफल होते ही उस व्यक्ति ने उन्हें कुछ सोने की मुद्राएं दी और वहां से श्रीपाल और विद्याधर कौशांबी में रथ वाहन राजा के नगर में एक उपवन के नीचे विश्राम करने लगे!

उसी नगर का धवल सेठ नामक व्यापारी अपने 10000 सैनिकों और 500 जहाजों के साथ व्यापार के सिलसिले में रवाना होता है और वहां पर उसके जहाज अटक जाते हैं! किसी विद्वान पुरुष के कहने पर कि शुभ लक्षणों से पारंगत किसी व्यक्ति की बलि चढ़ाने पर ये जहाज यहां से रवाना हो सकते हैं, धवल सेठ वहां के राजा से अनुरोध करता है और राजा के आदेश पर कुछ सैनिक शुभलक्षणों से पारंगत परदेसी को ढूंढने निकल जाते हैं और श्रीपाल, जहां पर विश्राम कर रहे होते हैं वहां पहुंच जाते हैं! सारी बात सैनिकों से सुनकर निर्भय श्रीपाल उनके साथ चल पड़ते हैं!

धवल सेठ अपने सैनिकों से श्रीपाल की बलि देने को कहते हैं तब श्रीपाल उन्हें समझाते हैं और फिर ललकारते हैं और अपने शौर्य कुशलता का प्रदर्शन देते हुए सभी सैनिकों को वहां से खदेड देते हैं! धवल सेठ श्रीपाल से प्रार्थना करते हैं कि मैं तो व्यापारी हूं और मेरे जहाज चलने चाहिए आप कुछ मदद करो, श्रीपाल नवपद ओली प्रार्थना करते हैं और जहाज चल पड़ते हैं! अमन सेठ खुश हो गया और उन्हें 100 स्वर्ण मुद्राएं देकर साथ चलने को कहते हैं! श्रीपाल साथ चलने के लिए एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं की मांग करते हैं और बाद में धवल सेठ के मना कर देने पर 100 स्वर्ण मुद्राएं देकर एक जहाज किराये पर ले लेते हैं, सभी जहाज बबर देश के बंदरगाह पर पहुंचते हैं तो उस देश के सभी अधिकारी 500 जहाज और 10000 सैनिकों से कर वसूल करने के लिए वहां पर पहुंच जाते हैं!

धवल सेठ के मना करने पर वहां के राजा अपनी सेना लेकर आते हैं और धवल सेठ की सेना भाग जाती है और धवल सेठ को बंदी बना लिया जाता है! दूर से अपने जहाज पर बैठे श्रीपाल से धवल सेठ विनती करता है और उसके इस वादे पर कि अगर वह उसे छुड़ा लेते हैं तो ढाई सौ जहाज उनको दे देंगे, श्रीपाल बबर देश के महाकाल राजा को युद्ध में परास्त कर देता है और बंदी बना लेता है! धवल सेठ उस राजा को मारने का आदेश देता है तब श्रीपाल कहते हैं कि किसी भी बंदी को या शरणागत को मारना नहीं चाहिए और उसे स्वतंत्र कर देते हैं! बबर के राजा महाकाल पद श्रीपाल के व्यवहार का बहुत अच्छा असर पड़ता है वह आग्रह करके श्रीपाल को अपने राजमहल में ले जाता है और अपनी कन्या मदन सेना के साथ उसका विवाह कर देता है!

कुछ दिनों के बाद श्रीपाल अपने ससुर द्वारा दिए गए बहुत सारे धन के साथ अपनी पत्नी मदन सेना के साथ वहां से रवाना होते हैं और रत्नदीप में पहुंच जाते हैं जहां पर सभी व्यापारी अपना माल बेचने के लिए बाजार में चले जाते हैं! इधर धवल सेठ को श्रीपाल से ईर्ष्या हो जाती है कि इसके पास ढाई सौ जहाज भी आ गए और राजा की बहुत सारी धनसंपदा के साथ उनकी कन्या का विवाह भी हो गया! इसलिए वह कुछ षड्यंत्र रचने लगता हैं ताकि श्रीपाल को मृत्यु प्राप्त हो और उनकी रानी और ढाई सौ जहाज उनके कब्जे में आ जाए!आज धर्म सभा में राष्ट्रीय महिला अध्यक्षा पुषा राजेन्द्र गोखरु जैन व सेवाभावी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुष्षा संचेती और पदाधिकारी गण पधारे और उनका सम्मान किया गया, धर्म सभा का मंच संचालन मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया!

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