हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान हैl वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं, वह इस प्रकार हैंl
धर्म की व्याख्या में लिखा है कि सहायक अधिकारी अभी जारी अमाया जारी और कल कपट जारी नहीं होता और मिथ्या तो दोषारोपण भी नहीं करता किसी की चुगली एवं निंदा नहीं करताl झूठी सप्त नहीं खाता झूठे संकल्प नहीं लेता वह समाज में धर्म के नाम पर विवाद उत्पन्न नहीं करता संप्रदाय के कट्टर वाद का जामा पहनाने का प्रयास नहीं करता l
श्रावक हमेशा क्रोध मान माया लोभ राग-द्वेष से अपने आप को बचाने का प्रयास करता हैl लेकिन आज के कलयुग वातावरण में यह बातें हो गई सामान्य से लगती हैl अनअकाउंटेड मनी आगामी से दान में मिल जाती हैl पं जिससे दिखावे आडम्बर की पूर्ति हो जाती है आज नाम एवं शाम के लिए उसी उसी आधार पर श्रेष्ठ श्रवण का मापदडंनिर्धारित किया जाता है l
जो सबसे ज्यादा दान दे वह सबसे बड़ा स्रावित लेकिन वास्तव में वह सच्चा श्रावक होता है जो जीवन के मापदंड स्वयं को निर्धारित करता हैl इस परिधि में अपना जीवन जीता है पुण्यश रावत अमीर नहीं था एक दिन पास एक दिन भोजन करता थाl जिस दिन उपवास होता था उसे दिन का भजन सब धर्मी भाई को बिना किसी अपेक्षा से करवाता थाl श्रावक कर स्पष्ट निर्देश देता है श्रावक व्यापार में व्यवहार के लिए अपने निर्धारित मर्यादाएं रखेंl
वस्त्र भोजन अलंकार भोजन सामग्री इत्यादि का परिमाण निश्चित करें श्रावक श्रमिक स्वाध्याय तथा ध्यान द्वारा भाव एवं भाषा को शुद्ध रखें वह अपनी शारीरिक क्रियो में सावधान रहेl त्यागी एवं प्रति साधु साधुओं को आहार देने में उनकी सेवा में सत्संग एवं धर्म की दलाली में जरा भी संकोच नहीं करता थाl वह भाव रखें यही जीवन जीने की कला हैl