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श्रावक दीर्घदर्शी बनें – साध्वी सुयशा

श्रावक दीर्घदर्शी बनें – साध्वी सुयशा

जय जितेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 29 जुलाई सोमवार, परम पूज्य सुधाकंवर जी मसा के मुखारविंद से:-आलोचना के संदर्भ में तीन शल्यों की चर्चा करते हुए निदान शल्य के बारे में बताया कि निदान करने से अनंत संसार की वृद्धि होती है, आत्म गुणों की हानि होती है। निदान अर्थात अपने धर्म फल की याचना करना, अपने किए हुए आध्यात्मिक साधना के बदले भौतिक सुखों की इच्छा करना। निदान करना अर्थात कोहिनूर हीरे के बदले कांच की याचना करना।

सुयशा श्रीजी महाराज साहब के मुखारविंद से:-दृष्टि या तीन प्रकार की होती हैं – वर्तमान दृष्टि, दीर्घ दृष्टि, परिणाम दृष्टि। वर्तमान दृष्टि अर्थात जिसमें हम आज के बारे में सोचें।

 दीर्घ दृष्टि अर्थात जिसमें हम आज के साथ-साथ कल के बारे में भी सोचे एवं परिणाम दृष्टि अर्थात जिसमें हम हर कार्य को करने से पहले उसके परिणाम का चिंतन करें। हमारी जिंदगी में कुछ परेशानी है ऐसी होती हैं जो पूर्व जन्म के कर्मों के कारण होती हैं लेकिन कुछ परेशानियां हम इसी जन्म में दीर्घ दृष्टि के अभाव में उत्पन्न कर देते हैं। और उन परेशानियों से बचने के लिए परमात्मा ने एक श्रावक के लिए दीर्घ दृष्टि आवश्यक बताइ है।एक सुज्ञ श्रावक सिर्फ आज के बारे में नहीं कल के बारे में भी विचार कर के कोई कार्य करता है।

आज की धर्म सभा में श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 26 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 18 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। आज की धर्म सभा में नाथद्वारा, खेरोदा, उदयपुर, भीलवाड़ा एवं चेन्नई के कई नगरों से श्रद्धालु गण उपस्थित थे एवं जैन भवन में महिला शिविर बहुत ही उल्लास पूर्वक गतिमान है।

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