अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने कहा श्रावक को प्रतिक्रमण करना जरूरी है। यदि इन्सान शारीरिक रूप से थक जाने के स्नान कर जिस तरह तरोताजा महसूस करता है उसी तरह श्रावकों को प्रतिक्रमण के स्नान से आत्मा की थकान को दूर करना चाहिए।
साध्वी महाप्रज्ञा ने कहा आज के इस कम्प्यूटर युग में हर काम बहुत तेज गति से होते हैं। मोबाइल व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। लोगों को उसके उपयोग के बारे में जानकारी भी जल्द ही हासिल हो जाती है। घर-घर में मोबाइल छाया हुआ है। अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो जीवन भी एक मोबाइल है।
जिस प्रकार मोबाइल में आप अहम चीजों को सेव करते हैं, अनावश्यक फाइल को डिलिट कर देते हैं, उसी प्रकार जीवन रूपी मोबाइल में भी सदगुणों को सेव करें, दुर्गुणों को डिलिट करेंऔर निंदा रूपी वाइरस को खत्म करें। अगर निंदा का दुर्गुण व्यक्ति में होता है तो जीवन दुष्कर बन जाता है। जीवन मात्र सात दिन का है। ऐसे में ऐसा जीवन जीयें कि उसका आनन्द आ जाए।
दिनभर में व्यक्ति एक बार भी खिलखिलाकर हंस जाए तो उसे चिकित्सक के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जिस प्रकार शरीर के रोगों को दूर करने के लिए डॉक्टर की जरूरत होती है, उसी प्रकार आत्मा के रोगों को दूर करने के लिए आध्यात्मिक चिकित्सक होते हैं जो आपके भवों-भवों के रोगों को दूर कर देते हैं।
साध्वी पदमकीर्ति ने कहा संसार सागर से तिरने के लिए जिनवाणी का श्रवण करना श्रावक के लिए आवश्यक है। यह अवसर आपको चातुर्मासकाल में मिलता है। इसलिए इस दौरान जिनवाणी का श्रवण कर जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करें।