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श्रावक की पहचान गुण से है रूप से नहीं: विराजित जयधुरंधर मुनि

श्रावक की पहचान गुण से है रूप से नहीं: विराजित जयधुरंधर मुनि

चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि हर आत्मा के भीतर गुण मौजूद रहते हैं, मात्र उसे प्रकट करने की आवश्यकता रहती है। विभाव दशा में गुण अवरुद्ध हो पाए पर वे पूरी तरह से लुप्त नहीं होते हैं।

हर चीज की पहचान उसके गुणों से ही होती है, श्रावक की पहचान रूप से नहीं गुण से है। एक श्रावक 21 गुणों से युक्त होता है। नाम तो बड़ा, लेकिन दर्शन छोटा हो तो कोई मतलब नहीं। महत्व नाम का नहीं, गुणों का होता है। कौवा और कोयल दोनों ही दिखने में एक समान लगते होंगे लेकिन दोनों की गुणों में अंतर होने से कौवा हर जगह से उड़ा दिया जाता है जबकि कोयल की आवाज सुनने के लिए हर कोई तरसता है।

श्रावक की पहचान न नाम से, न गांव से,न वेष से, न देश से, न पद से, न कद से, न धन से, न तन से, न जाति से, न ख्याति से होती है। क्योंकि धन, पद, यश, कुल तो हर किसी को मिल सकता है, लेकिन श्रावकपना प्राप्त होना बहुत दुर्लभ होता है। मात्र बाह्य रूप ही नहीं, आंतरिक रूप भी श्रेष्ठ होना चाहिए । इस अवसर पर आचार्य जीतमल का 110वां जन्म दिवस त्याग पूर्वक मनाया गया।

वे शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ ज्योतिष विज्ञान में भी पारंगत थे। वे जयगच्छ के नवमें पट्टधर एवं महा प्रभावक आचार्य थे। उन्होंने 11 वर्ष की अल्पायु में दीक्षा लेकर अपना संपूर्ण जीवन जिनशासन के लिए समर्पित कर दिया। वे वचन सिद्ध साधक , आगम मर्मज्ञ, तर्क मनीषी एवं संस्कृत प्राकृत के ज्ञाता थे।

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