जयमल जयंती पर पंचदिवसीय कार्यक्रम आज से
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा आचार शुद्धि से पहले विचार शुद्धि जरूरी है। साधक की साधना विचार शुद्धि के बिना व्यर्थ है। विचार बीज है और आचरण उसका फल। कभी-कभी विचार शुद्ध नहीं होते लेकिन क्रिया बड़ी शुद्ध दिखती है तो वह क्रियाएं अच्छा देनेवाली नहीं है। आचार से पहले विचार शुद्धि जरूरी है।
क्रिया भोजन है तो भाव उसका नमक। अच्छे विचारों से ही क्रिया भी शुद्ध होगी। जैसी सोच होगी वैसा ही व्यक्तित्व बनेगा। जितने भी महापुरुष हुए हैं उनकी सोच महान रही है।
आचार्य आत्माराम की जयंती पर कहा कि श्रमण समाज एक नन्दनवन के समान है और उसमें साधु सन्त महावृक्ष हैं, आचार्य उस नन्दनवन के महावृक्ष ही नहीं कल्पवृक्ष थे। कोई भी व्यक्ति उनकी छत्रछाया में बैठता तो सारी इच्छाएं पूरी होती, कोई भी निराश नहीं जाता। उनके विचार, आचरण, सोच महान थे।
साध्वी डॉ.उदितप्रभा ने कहा रास्ते का पत्थर भी मूर्तिकार के हाथों में छैनी और हथोड़ों से सुंदर प्रतिमा बनता है। लोग उसे नमन, पूजन करते हैं। इसी प्रकार मानव के भीतर सुषुप्त प्रतिभा छुपी है, शक्ति का अनन्त स्रोत है। उसे सद्गुरु का संयोग मिले तो अपने ज्ञान से उसकी शक्ति को जाग्रत कर देता है। वही साधारण व्यक्तिनमन, वंदन, अभिनन्दन के योग्य दिव्य महापुरुष बन जाता है।
आचार्य आत्माराम का जन्म भादवा सुदी 12 को पंजाब के जालंधर में चोपड़ा वंश में परमेश्वरीदेवी की कुक्षि से हुआ। कुछ समय बाद ही माता-पिता का देहावसान हो जाता है।
बालक आत्माराम संसार की राहों में भटकते लुधियाना आए और सोहनलाल एडवोकेट के सानिध्य में रहे जो उनकी विलक्षण प्रतिभा देख सद्गुरुओं के चरणों में ले गए। आषाढ़ शुक्ल पंचमी को मात्र ग्यारह वर्ष में दीक्षा ली और अतिशीघ्र आगमों, संस्कृत, प्राकृत का अध्ययन किया। 29 वर्ष की आयु में उपाध्याय पद प्राप्त हुआ। 1990 में अजमेर में वृहद साधु सम्मेलन में मुनिसंघ ने आगम रत्नाकर की पदवी से नवाजा।
वे एक आदर्श संत थे। जीवन में अनेक परीसह-उपसर्ग आए, उन्होंने सदा शांत भाव से सहन किए। सियालकोट में चातुर्मास के समय अपने आत्मबल से फ्लेग जैसी बीमारी को भी हरा दिया। आचार्य जयमल की जयंती पर पंचदिवसीय कार्यक्रमों में 11 को प्रथम दिन जयमल जाप होगा।