*स्वर्णश्रीजी मारसाब* ने आज बहुत ही सटीक शब्दों में गुरुदेव परमपूज्य सौभाग्यमलजी मारसाब का व्यक्तित्व सामने रखा|
जैसे बडे महल हमे दिखाई तो देते है लेकिन वे बडे महल बनने में महत्वपूर्ण होती है उस महल की नींव, वैसेही श्रमण संघ की मजबूत नींव के पत्थर थे *सौभाग्यमलजी मारसाब|* साधना के महान शिखर पुरुष| संयम साधना में ही हमेशा रत रहते थे| और उसी वजह से वाचसिद्धी प्राप्त थे| इस बात को समजाते हुए मुकणा गाव की घटना *मानमलजी श्रावक की*) कैसे उन्होंने आये हुए मेहमानोंको गौतम प्रसादी परोसी| बहोत ही अच्छे शब्द में मारसाब ने कहा|
और ये घटना से सिख दी की गुरुदेव ने दिये हुए आदेश में किंतु परंतु नहीं आने देना है, just do it.
*परमपूज्य सुमन प्रभाजी म. सा.*
जीवन कितना जिये इसे ज्यादा कैसे जिये यह महत्वपूर्ण है| सौभाग्यमलजी महाराज साब का जीवन ऐसा ही था| वचनसिद्ध पुरुष थे वे|( नासिक के आडगाव नाका की घटना की कैसे श्रावक की जिंदगी बदल गई)
सुख विपाक सूत्र में वर्णित सुबाहु कुमार की कहानी को आगे ले जाते मारसाब ने कहा गर्भवती बनी धरणीदेवी की दिनचर्या में बदल आना शुरू हुआ| गर्भसंस्कार करते करते पुत्र को जन्म दिया| नाम रखा सुबहू|
*पुतके पग पालन में* उत्तीनुसार सुबहू कुमार प्रतिभावान लगते थे| बाह्यसंस्कार की शुरुआत हुई| माता पिता मालि के समान होते है जो बालक के जीवन को विकसित करते है, आकार देते है|
*सुत जैसा फेटा बाप जैसा बेटा* नुसार अपने बच्चों का जीवन अच्छा बनाने के लिए, सुंदर बनाने के लिए माॅं बाप को मरसाब ने जागृत किया| {राजा जसवंत सिंह का उदाहरण दिया|} न डरने वाले ऐसे राजा आज शत्रुसेना देखकर घबरा गये तब उनकी माॅंने उनका उत्साह बढाया| अपने शब्द से उन्हें जागृत किया| वह लडाई जितकर आए| तब खुलासा किया की दासी का दूध पान करने की वजह से मन में कायरता आई थी| तो हमें सीख लेनी है कि हमे अच्छे ही संस्कार बच्चों को देते रहना है| इतना कहकर अपने शब्दों को विराम दिया|
जैन श्रावक संघ, राजगुरुनगर