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ज्ञान वाणी

श्रमण परम्परा के ज्योतिर्मय नक्षत्र थे आचार्य आनन्दऋषि : कपिल मुनि

चेन्नई. गोपालपुरम स्थित छाजेड़ भवन में विराजित कपिल मुनि के सानिध्य में शुक्रवार को आचार्य आनन्दऋषि का 119वां एवं उपाध्याय प्रवर ेकेवलमुनि का 106वां जन्म दिवस जप-तप की आराधना और सामूहिक सामायिक द्वारा मनाया गया।
इस मौके पर मुनि ने कहा जन्म और मृत्यु दो किनारे हैं जीवन रूपी सरिता के। महत्व किनारों का नहीं बल्कि इनके बीच बहने वाली नदी का होता है। उन्हीं का मरण स्मरण के योग्य होता है जिनका जीवन संयमित और समाधिस्थ होता है।
आचार्य आनंदऋषि जैन धर्म दिवाकर और भारतीय संत परम्परा के ज्योतिर्मय नक्षत्र थे। वे ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अप्रमत्त साधक थे। उनकी कथनी और करनी में एकरूपता थी।

वे आखिरी सांस तक ज्ञान, दर्शन और चारित्र की साधना में पुरुषार्थ करते हुए जिनशासन की प्रभावना करते रहे। उन्होंने बचपन में ही बाल सुलभ क्रीड़ाओं को दरकिनार कर संयम पथ पर कदम बढ़ाया।

मुनि श्री ने बताया कि उपाध्याय प्रवर केवल मुनि जिनशासन के फलक पर सूरज की तरह चमकते रहे। वे जिनशासन के सजग प्रहरी थे। इस मौके पर शहर के अनेक उपनगरों से गणमान्य व्यक्तियों समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

संघ अध्यक्ष अमरचंद छाजेड़ ने बताया कि रविवार को सवेरे 7.30 बजे से 9 बजे तक सर्व सिद्धि प्रदायक,संकट मोचक भक्तामर स्तोत्र जप अनुष्ठान होगा और प्रवचन दोपहर 2.30 बजे से होगा।

संचालन संघ मंत्री राजकुमार कोठारी ने किया।

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