चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसरीश्वर ने प्रवचन में कहा संसार एक नाटक है। इसे नाटक की दृष्टि से देखने की कोशिश करो। कर्मों के भिन्न परिणाम के अनुसार विभिन्न आकृति मिलती है उसी अनुसार जीव जीवन जीते हैं। कर्मों के कारण असंख्य जीव नारकी भुगतते हैं।
कभी तीर्यंच गति का नाटक करने का कहते हैं। तीसरा नाटक मनुष्य गति का है। अनंत काल पहले हमारी आत्मा नीगोद में थी। नीगोद में जीवों की दशा कैसी है यह हम समझ नहीं सके। नीगोद दो प्रकार के हैं व्यवहार राशि और अव्यवहार राशि। अव्यवहार राशि में रहे जीव किसी के उपयोग में नहीं आते। ये सूक्ष्म जीव होते हैं।
हम उस दशा से बाहर आए, इसका उपकार सिद्ध भगवंत का है लेकिन जिनका उपकार है उन्हें कभी याद नहीं किया। मनुष्य जन्म महोत्सव का स्थान है जहां अरिहन्तों के 120 कल्याणक है, वह भूमि पुण्यशाली है। तीर्थंकरों को मनुष्य गति का बहुत महत्व है लेकिन हमारे दिल में इसका कितना महत्व है, यह बताया है।
यदि यहां आकर अज्ञानी रहें तो दोष किसका। यह मन व नयन को आनंद देने वाली है। लेकिन हमारे जीवन में सब कुछ विपरीत है। पुण्य से हमें मनुष्य जन्म मिला है, यह भव्य जीवों के लिए मोक्ष का मार्ग है। पापी लोगों के लिए संसार का कारण है।
धर्माराधना से मोक्ष का कारण मिल सकता है। यहां जीव, अजीव, पुण्य, पाप तत्वों के स्वरूप मिलना संभव है। सम्यक दर्शन के छ: लक्षण है आत्मा है, आत्मा नित्य है, आत्मा कर्म का कर्ता है, कर्मों का फल आत्मा भोगती है, मोक्ष है और मोक्ष के उपाय भी है। यह श्रद्धा जीवन में है तो सम्यक दर्शन है।