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श्रद्धा अध्यात्म का प्राण है – साध्वी सुधा कंवर

श्रद्धा अध्यात्म का प्राण है – साध्वी सुधा कंवर

 कोडमबाक्कम वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में विराजित साध्वी सुधा कंवर आज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तराध्ययन सूत्र के 29वें अध्ययन में धर्म और श्रद्धा का विश्लेषण! श्रद्धा का मतलब विश्वास, आस्था, अमृत, प्राणवायु है, परिवार, धन और सुख मिलना सुलभ है लेकिन श्रद्धा का मिलना दुर्लभ है, श्रद्धा हमारे शरीर की रीढ की हड्डी है! बिना रीढ की हड्डी हमें निष्प्राण बना देती है,कण-कण में श्रद्धा का संचार होना चाहिए और मजबूती होनी चाहिए,सच्ची श्रद्धा गाय के दूध के समान और मिथ्या श्रद्धा गाय के खून के समान होते हैं,श्रद्धा तो वह संजीवनी बूटी है जो भवभव को सुधार देती है,हनुमान द्वारा “श्री राम” लिख कर फेंका गया पत्थर तिर जाता है और रामद्वारा फेंका गया खाली पत्थर भी डूब जाता है!

प.पू.सुयशाश्री के मुखारविंद से धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वियोग:-जहां संयोग है वहां वियोग है! दुख कभी कम कभी ज्यादा होते हैं! यह प्रकृति का नियम है!अभाव:-हर इंसान की जिंदगी में कोई ना कोई अभाव होता है इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो संपूर्ण रूप से सुखी हो क्योंकि अभाव अपेक्षा से होता है और इंसान की अपेक्षाएं कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार में कुछ ना कुछ अपेक्षाएं रहती है और वे अपेक्षाएं पूरी ना होने पर उन का अभाव रहता है,हर कोई व्यक्ति का सपना यही रहता है कि मैं उसके जैसा बनूं, इसके जैसा बनूं , हमें देख कर हमारे जैसा बनने की ख्वाहिश भी बहुत लोग रखते हैं।

यानि सभी दुखी है कुछ ना कुछ अभाव महसूस करते हैं,जिंदगी में सब कुछ हम सोचे जैसा नहीं होता, जिंदगी बहुत हसीन है इसे जीने की कला आनी चाहिए,हमारी जिंदगी में सुख तो आता है लेकिन छोटी छोटी समस्या लेकर आता है क्योंकि संपूर्ण रूप से कोई भी सुखी नहीं हो सकता जब तक कि भीतर में इच्छाएं हैं, तो हमे चाहिए कि उन छोटी-छोटी समस्याओं को दरकिनार करते हुए जिंदगी को सुखमय बना दें, परिवार को स्वर्ग बना दें,आज की धर्म सभा में अशोक तालेड़ा ने 19 उपवास, सुशीला बाफना ने 11 उपवास, एवं प्रकाश बाई लालवानी ने 10 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। आज 85 पद्मावती माता के एकासन कि व्यवस्था जैन भवन के प्रांगण में कराए गए धर्म सभा का संचालन मंत्री देवी चंद बरलोटा ने किया!

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