रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में बताया कि शुभ और अशुभ कर्म दोनों ही जीव के कर्म बंध का कारण है। जीव सात कर्मों का निरंतर बंध करता है एवं जीवन में एक बार आयुष्य कर्म बंध होता है! साथ कुछ कर्म निर्जरा भी होती है किन्तु वह अल्प है। अत: अशुभ से निवृत होने से अशुभ कर्म न्युन हो जायेंगे, शुभ कर्म का बंध होगा अशुभ कर्म वेदन बहुत कठिन है। जब शुभ कर्मों का उदय होता है तो जीव प्रमाद में चला जाता है और अशुभ कर्म बंधते है।
प्रेरणा देना जिनेश्वर का धर्म है। उसे स्वीकार करना शुभ है। किंतु श्रोता किस अपेक्षा से ग्रहण करता है यह उसका पुरषार्थ है। सजग, जीव कर्मबंधन से बचता है। संसार में हर क्षण हर कदम पर कर्म बंध की संभावना है। अतः सजग रहे सावधानी में सुरक्षा संभव है। असावधानी कोई क्रिया मत करो! हर क्षण विवेक रखें। अशुभ कर्म असावधानी में ही बंधते है! बांधने के बाद उन कर्मो से बचना मुशकिल है। कर्मबंधन को भोगने से कोई नहीं बचा सकता, भोगे बिना छुटकारा नहीं। तीर्थकर मात्र प्रेरणा दे सुपात्र ग्रहण करते है । जिन मार्ग को धारण कर वह कर्मो से छुटकारा पा जाता है। अशुभ कर्म जितनी प्रसन्नता से बांधे
उसी उदय के समय उसी प्रसन्नता से भोग लो तो क्षय हो जायेंगे। अन्यथा कर्म श्रृंखला को तोड़ना कठिन है! भगवान ने इतना उपदेश दिया फिर भी जीव अकरणीय कार्य करता है और दर्शक उसका आनन्द लेकर कर्मबंध करता है। साथ में बांधे कर्म साथ में ही भोगने पड़ते है ज्ञानी जन कहते है संसार में अनासक्त रहो! जिसमें आप सुख मानते हो उसमें सुख नहीं है!
सुख त्याग में है! आवश्यक कार्यो में भी अनासक्त रहो जिससे आपको सुख समाधि प्राप्त होगी। सावधानी से कर्म अल्प होते हैं। मन्द रस वाले होते है। तीर्थंकर भगवान भी क्रीया करते है! चिन्तन मनन करते है कि उनके कर्म उनको कर्म बंधन नही होते क्योंकि वो अनासक्त है! संसार में रह कर कर्मबंध से बचने का मार्ग प्रभु ने बता दिया किंतु जीव प्रमाद में चले जा रहे है। जीव विकार में चले जाता है और सागर जितने कर्म लबालब बंध हो जाते है! आसक्ति वश जीव, राग द्वेष कर कर्मबंध कर यदि राग द्वेष को छोड़ दे। समभाव रखे तो कर्मबंध होंगे। कर्मबंध नहीं होगें तो भोगने की जरूरत भी पड़ेगी जीव को संताप नहीं होगा !
गुम्मडीपुंडी से संघ लेकर पधारें। यस यस जैन संघ, गुम्मडीपुंडी के मंत्री महावीरचंद जी सांखला ने जयतिलक जी मरासा से अगले वर्ष 2023 के चातुर्मास की विनती की। संचालन सेक्रेटरी नरेंद्र मरलेचा ने किया।