जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने परम पिता परमात्मा ऋषभ देव के प्रति मानतुंग आचार्य द्वारा भक्ति स्वरूप भक्तामर जी की विवेचना करते हुए कहा, ईशवर परम विशुद्ध आत्मा होती है प्राय : सभी धर्मों मे उसकी भिन्न भिन्न रूप मे मान्यता दी गई है!जैन धर्म मे भी इसे तीर्थंकर अरिहंत सिद्ध आदि रूपों मे वर्णित किया गया! आस्तिक जन इसे जीवन का कर्ता धर्ता मानकर ईशवर के प्रति पूर्णतः समर्पित रहता है! जो कुछ भी शुभ अशुभ घटना मे ईशवर को ही सर्वस्व मान लेता है एवं उसके जीवन मे धर्म के प्रति भावनाएं बनी रहती है!
साथ ही शारीरिक मानसिक ऊर्जा का संचार होता है एवं जीवन विकास मे विविध गुणों का आगमन बना रहता है! मानव के जीवन मे सुख दुःख लाभ हानि जीवन मरण समस्त घटनाओ मे एक सहजता जागृत हो जाती है वह न तो दुखों से घबराता है न सुखों मे उसका अहंकार जागृत होता है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नवरात्री की शुभकामनायें देते हुए सभी को प्रार्थना का महत्व समझाया गया।
उदाहरण स्वरूप एक वृद्ध माता का रुग्ण पोता जीवन की अंतिम सांसे गिन रहा था, बूढी माँ की प्रार्थना मे वह शक्ति सामर्थ्य जागृत हो गया कि मुंबई का डाक्टर पटनायक जिस प्लेन मे जा रहा था, हवामान बिगड़ने से प्लेन को मार्ग मे रुकना पड़ा वी टैक्सी से जा रहा था किन्तु आंधी तूफान के कारण एक झोपड़े मे ठहरा जहाँ वो रुग्ण बालक बूढी दादी के साथ रहता था, उसी डाक्टर से उसका ईलाज सम्पन्न हो गया वस्तुत : प्रार्थना आकर्षक सिद्धांत को पुष्ट करता है! महामंत्री उमेश जैन द्वारा स्वागत व कल जैनम जैन के तिलक रस्म की सूचना प्रदान की गई!