चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने कहा शुद्ध बुद्धि ही सिद्धि दिलाती है। साधनों में मस्त रहने वाला साधना से दूर हो जाता है। मोक्ष-सुख को प्राप्त करने के लिए प्राणी को दान आदि पुण्य के कार्य, कषायों पर विजय, माता-पिता, गुरु व परमात्मा की पूजा, विनय, न्याय, चुगली का त्याग, उत्तम पुरुषों की संगत, हृदय की शुद्धता, सप्त व्यसनों का त्याग, इंद्रियों का दमन, दया आदि धर्म, गुण, वैराग्य तथा चतुराई को धारण करना चाहिए।
जो बुद्धिशाली मानव सुपात्रदान करता है, उसकी कीर्ति, पवित्रता, सुख व चतुरता में निरंतर अभिवृद्धि होती रहती है। शील-सदाचार का पालन करने वाले, कठिन तप करने वाले, शुभ भाव धारण करने वाले तो बहुत मिल जाते हैं, लेकिन प्रचुर मात्रा में दान देने वाले तो विरले ही होते हैं, जो यदा-कदा ही हमें दिखाई देते हैं।
विवेकी मनुष्य अपने धन को परोपकार में लगाकर परलोक सुधारते हैं और इस लोक में भी सम्मान पाते हैं, परंतु प्रमादी-आलसी प्राणी धन को भोगविलास में उड़ा देते हैं, इसलिए धन के द्वारा वे न इस लोक में अपनी रक्षा कर पाते हैं और न ही परलोक में।