माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा शीतलता गुस्से का विलोम अर्थ देने वाला होता है। चन्द्रमा के शीतलता से आदमी को गुस्से से मुक्त होने तथा शांति प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। प्रेक्षाध्यान में भी ज्योति:केन्द्र पर चन्द्रमा का ध्यान करने का वर्णन है।
दो तीर्थंकर चन्द्रमा के समान गौरवर्ण वाले हुए। आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभ स्वामी और नौवें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंत स्वामी।चन्द्रमा में तीन विशेषताएं होती हैं। पहली विशेषता होती है कि वह शीतल होता है।
चन्द्रमा का दूसरा गुण यह है कि वह निर्मल होता है। चन्द्रमा से भी निर्मलतर सिद्ध होते हैं। चन्द्रमा के निर्मलता के गुण से मनुष्य अनासक्ति की चेतना जागृत करने का प्रयास कर सकता है। आदमी को परिवार में रहते हुए भी अनासक्ति का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।
चन्द्रमा का तीसरा गुण है प्रकाशवत्ता। इससे आदमी को स्वयं में ज्ञान के प्रकाश को बढ़ाने की प्रेरणा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी स्वयं में ज्ञान का प्रकाश बढ़ाने और फिर प्राप्त ज्ञान के आलोक से दूसरों को भी आलोकित करने का प्रयास करे तो कितना सुन्दर कार्य हो सकता है। इन दोनों तीर्थंकरों के चन्द्रमा के समान गौर वर्ण से प्रेरणा लेकर चन्द्रमा की तीनों विशेषताओं से खुद को भावित करने का प्रयास करें।
इस दौरान जैन विश्व भारती के वाइस चांसलर बच्छराज दुगड़ व चेन्नई चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष धर्मचंद लूंकड़ ने जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘जैन फिलोसफी ए सांइटिफिक अप्रोच टू रियलिटी’ का आचार्य के समक्ष लोकार्पण किया।