कोडम्बाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज तारीख 26 अगस्त शुक्रवार पर्युषण महापर्व के तीसरे दिन प.पू. सुधाकवरजी मसा के मुखारविंद से:-पर्यूषण पर्व प्रेम एवं मैत्री का संदेश देने आते हैं। हृदय की शुद्धि, चित्त की शुद्धि, आत्मा की सिद्धि एवं समाधि की समृद्धि देने के लिए आते हैं। अंतकृत दशांग सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि देवकी महारानी के पास श्री कृष्ण चरण वंदना के लिए आते हैं। माता को अश्रुपूरित नेत्रों कपोल पर हाथ रख कर दुखी अवस्था में देखते हैं! तब मातेश्वरी से कहते हैं हमेशा चरण स्पर्श के समय आप आशीर्वाद प्रदान करती हैं लेकिन आप आज आर्तध्यान में यह भी भूल गए, क्या वजह है..? माता कहती है मैंने नल और कुबेर जैसे छः पुत्र रत्नों को जन्म दिया, लेकिन किसी का भी लालन पालन भरण पोषण अपने हाथों से ना कर सकी!
तुम तो जन्म लेते ही नन्दगोपाल के यहां चले गये और माता यशोदा ने ही तुम्हारा लालनपालन किया! तुम खुद 6 महीने में एक बार ही आते हो और मैं तुम्हारा मुखड़ा देखने के लिए तरस जाती हूं! तीन खण्डों के स्वामी कृष्ण वासुदेव ने स्थिति को भांप कर छोटे बालक का रूप धारण कर लिया और शिशु क्रीडा करने लगे! माता देवकी बहुत आनंदित हुयी लेकिन जैसे ही भान हुआ कि यह तो कृष्ण है तो फिर दुखी हो गयी! कृष्ण वहां से पौषध शाला पहुंचे और तेला धारण किया और देवता ने लघु भ्राता की भविष्यवाणी की!
नौ महीने पश्चात देवकी एक तेजस्वी मखमली त्वचा जैसे बच्चे गजसुकुमाल को जन्म देती है और उसका रोम-रोम पुलकित हो जाता है! अच्छा लालन-पालन करने के बाद बच्चे को 8 वर्ष की अवस्था में शिक्षा ग्रहण करने भेज दिया जाता है! भगवान अरिष्ठनेमी द्वारिका नगर पधारते हैं तब कृष्ण वासुदेव और गजसुकुमाल दर्शन करने के लिए जाते हैं एक ही उपदेश में गजसुकुमाल को वैराग्य उत्पन्न हो जाता है! कृष्ण भगवान सोमिल ब्राह्मण की पुत्री का रूप लावण्य देखकर उसकी शादी सोमिल की सहमति से गजसुकुमाल के साथ तय कर देते हैं!
कृष्ण वासुदेव की इच्छा पूरी करने के लिए 1 दिन का राज्याभिषेक करते हैं और भगवान अरिष्ठनेमी के पास शिक्षा ग्रहण करके उनकी आज्ञा लेकर महाकाल श्मशान पहुंच जाते हैं और साधना में लग जाते हैं! उसी समय सोमिल ब्राह्मण उधर से गुजरता है और क्रुद्ध अवस्था में वह उनके सिर पर गीली मिट्टी की पाल बांधकर बहुत सारे अंगारे उनके सिर पर रख देता है! अत्यंत वेदना को सहर्ष स्वीकार करते हुए कर्मों का क्षय करते हुए गजसुकुमाल सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर मोक्ष चले जाते हैं! बहुत भाग्यशाली होते हैं वह लोग जिनके मां बाप होते हैं! मातापिता घर पर ही तीर्थ के समान है! लेकिन वृद्धावस्था में जो अपने माता पिता की सेवा नहीं कर सकते वह बहुत ही दुर्भाग्यशाली होते हैं!
परम पूज्य सुयशा श्रीजी मसा पहले दिन ज्ञान दिवस, दूसरे दिन दर्शन दिवस और आज तीसरे दिन चारित्र दिवस के बारे में फरमाया:-हमारा सोचना बोलना और हमारी कार्यप्रणाली वर्तमान परिवेश में है! वर्तमान परिवेश शिक्षा (education) और नैतिक मूल्यों (moral values) पर आधारित है! आज के विचार अच्छा पढ़ना अच्छे मार्क लाना और अच्छा स्टेटस बनाना है! शिक्षा के साथ संस्कार और सुविधा के साथ सुरक्षा अनिवार्य है! तभी हम सुख शांति से जी सकते हैं! सुविधा एकल परिवार और सुरक्षा संयुक्त परिवार के समान है! एकल परिवार में सुविधा तो मिलेगी लेकिन सुरक्षा का अभाव रहेगा! वैसे ही संयुक्त परिवार में सुरक्षा तो मिलेंगे लेकिन सुविधा नहीं!!
हमारे जिंदगी को सुखी बनाने के लिए कुछ लक्ष्मण रेखायें, कुछ मर्यादाओं का होना जरूरी है! क्रिकेट में रन लेने के लिए क्रीज और पिच की मर्यादा में रहना पड़ता है! कर्म सत्ता उस अंपायर के समान है जो सिर्फ आउट या नाट आउट का निर्णय लेता है! हमारे गुरु भगवंत हमें मंगलमयी वाणी सुनाकर धर्म ध्यान का बोध कराते हैं जो उस कैप्टन के समान है जो क्रिकेट के हर प्लेयर का संचालन करता है!
हमारे परमात्मा उस cricket coach के समान है जो अदृश्य रहकर हमारी मदद करते हैं! जिनवाणी श्रवण करने के बाद सुरक्षित सोच अच्छे बुरे की सोच हमारी जिंदगी में बहुत मायने रखती है! हम हमारे बच्चे का उचित विवाह करने के लिए फैशन या आडंबर में जाने के बजाए, उस परिवार की शर्म, समय, समझ और स्वभाव को ध्यान में रखकर करते हैं तो जीवन ज्यादा सुखी रहता है!
शर्म आदमी के स्वभाव को संतुलित रखती हैं! समय पर अपनों का साथ बहुत जरूरी है! साथ में अच्छे बुरे की समझ और संस्कार होने बहुत जरूरी है! उपरोक्त लिखित सभी बातों के लिए हमारी जिंदगी में हमें स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है जब शरीर स्वस्थ रहेगा तभी हम धर्म ध्यान और सांसारिक सुखों को प्राप्त सकते हो! बाकी सभी वरीयता (priority) बाद में आती है! आज की धर्म सभा में सामूहिक तेले की तपस्या वालों का अभिनंदन किया गया।