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शाश्वत सुख को प्राप्त करो: जयतिलक जी मरासा

शाश्वत सुख को प्राप्त करो: जयतिलक जी मरासा

पुज्य जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में बताया कि प्रभु गृहस्थ में रहते हुए आत्म कल्याण के लिए 12 व्रत निरूपण किया! जिससे अपने जीवन को मर्यादित कर अनावश्यक पापों से निवृत होकर आत्मकल्याण के लिए प्रगति करता है। उसका एक ही लक्ष्य है कि अरिहंत सिद्ध की तरह अपने आत्म गुणों को प्रकट करना। शाश्वत सुख को प्राप्त करो! श्रावक निवृति मार्ग पर बढ़ कर धर्म रुचि में अग्रसर होता है! आमा को धर्म से जोडने शिक्षा व्रत अंगीकार करता है। सामायिक 48 मिनट की आराम से कर सकता है। प्रमादी के लिए कुछ भी करना कठिन है।

उदाहरण- एक गाँव के सभी व्यक्ती प्रमादी थे। सभी ने विचार विमर्श किया। हम कुछ भी कार्य नहीं कर सकते किंतु पेट तो भरना ही है। सब मिल कर राजा के पास जाकर याचना की हमारी भोजन पानी रहने की व्यवस्था कर दो। राजा ने मंत्री को व्यवस्था की आज्ञा दी ! मंत्री न सारी व्यवस्था कर दी! सभी आलसी आराम से रहने लगे। एक दिन राजा ने आज्ञा दी कि महल को आग लगा दो! सभी इधर उधर दौडन लगे। किंतु दो आलसी वहीं सोए रहे। राजा ने उन दो महाआलसी को गाँव से भगा दिया। ऐसा ही हमारी भी व्यवस्था है।

प्रमादी न तो अपना और दूसरों का कल्याण नहीं कर सकता ! अपने समय का सदुपयोग करो ! जब अवसर हो सामायिक कर लो! पुरुषार्थ करो। इतने सुगमता के सामायिक होती है। जब श्रावक मन से परिपक्व हो जाता है सामायिक करने में तब वह देसावगासिक व्रत करने का अधिकारी हो सकता है। सामायिक में कोई बाधा नहीं बंधन नहीं। चाहे जो खाओ, पीओ, खुले हो तब कहीं भी जाओ आओ कोई बंधन नहीं। जब वह जीव दसवें व्रत में जाता है तब दिशा की मर्यादा करता है। उपयोग परियोग को अल्प करता है! प्रथम के 8 व्रत को और संकुचित करता है।

तालाब जितना पाप कुण्ड जितना हो जाता है। सब कुछ होने के बावजूद वह 14 नियम को धारण करता है! गाँव के सीमा का भी त्याग करता है! दसो दिशाओ में आरम्भ सारंभ का त्याग करता है। देशवागासिक व्रत में चाहे तो उपवास, एकासणा कुछ भी कर सकता है किंतु रात्री भोजन त्याग अनिवार्य है! अचित में भी द्रव्य की मर्यादा रख सकते हैं! अल्प द्रव्य से अधिक आनंद आता है। रुचिपूर्वक, भावपूर्वक आराधना करने से आनंद ही आनंद है। जब तक भाव से व्रत नहीं करता तब तक कम की निर्जरा नहीं होती। जब में मन में धर्म की रुचि जागती है तो वह रुचिपूर्वक आराधना करता है! आनंद की अनुभूति होती है।

गुरुदेव ने फरमाया कि दिनांक 24 अक्टूबर, सोमवार को भगवान महावीर निर्वाण दिवस दीपावली के दिन एकासना, आयम्बिल या उपवास करने कि भावना रखें। संचालन गौतमचंद खटोड़ ने किया।

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