_‘‘लेखिका तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम् असाधारण साध्वी प्रमुखा हैं जो गत पचास वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने का अद्भुत कार्य कर रही हैं। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन भरे मार्गदर्शन में तेरापंथ महिला समाज ने अभूतपूर्व प्रगति की है। महिला समाज अपने संस्कारों और संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए विकास पथ पर अग्रसर हो इसके लिए वे अहर्निश प्रयासरत हैं।’’_
परिवार समाज की एक ईकाई है। उसके दो रूप हैं- एकल परिवार और संयुक्त परिवार। भारतीय समाज व्यवस्था में संयुक्त परिवार की व्यवस्था मान्य रही है। आधुनिकता का प्रभाव अथवा शिक्षा, व्यवसाय आदि अपेक्षाओं के उद्भाव से आज संयुक्त परिवार की प्रथा चरमरा गई और एकल परिवार व्यवस्था प्रतिष्ठित होती जा रही है। एकल परिवार हों या संयुक्त परिवार, शांत सहवास की अपेक्षा दोनों को है।
परिवार एक पाठशाला है। वहां सहयोग, सामंजस्य, सेवा, सद्भावना आदि गुणों की सीख सहज रूप में मिलती रहती है। जिस परिवार के हर सदस्य में उपर्युक्त गुणों का विकास होता है, वहां परिवार के सभी सदस्य शांति से रह सकते हैं। आपसी विश्वास, यथार्थ चेतना का विकास, उत्तरदायित्व निभाने की मनोवृत्ति, सहनशीलता, गुणग्राहकता, संवादिता आदि तत्व शांत सहवास के घटक हैं।
पश्चिम में पारिवारिक रिश्ते लिजलिजे हैं। भारत में उनकी पकड़ मजबूत है। आपसी समझ और सामंजस्य की स्थिति में ही यह मजबूती सुरक्षित रह सकती है। पारिवारिक या सामुदायिक जीवन को सफल बनाने वाले कुछ सूत्र हैं- सद्व्यवहार, प्रेम का विस्तार, मेरापन का विसर्जन, संवेदनशीलता या सहानुभूति, अच्छे कार्य का श्रेय दूसरों को देने का मनोभाव, संदेहपूर्ण स्थितियों का निराकरण, अहंचेतना का विलय आदि। पीढ़ियों का अंतराल शांत सहवास में एक बाधा है। यह भी एक चिंतन है। किंतु यह चिंतन एकांगी है। वास्तव में पीढ़ियों का अंतराल कोई समस्या नहीं है। समस्या है दो-तीन पीढ़ियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की। सामंजस्य स्थापना की अर्हता विकसित हो जाए तो सैकड़ों-हजारों व्यक्ति शांत सहवास का प्रयोग करने में सफल हो सकते हैं।
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी के अमृत महोत्सव पर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा प्रदत आलेख।
स्वरुप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई