चेन्नई. बुद्ध ने करुणा को चुना और एक पक्षी को बचाने के लिए अपने हाथ का मांस काट कर देने लगे। शांति के लिए पैगम्बर ने हरा रंग चुना व जीसस ने शूली पर चढ़ते हुए प्रेम एवं घावों पर मरहम लगाने की बात कही। जब महावीर ने पैर डसने वाले सर्प के मुख में दूध की धारा बहाई। यह परम अहिंसा है।
ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा संस्कृति की रक्षा के लिए मोहम्मद का ईमान, पैगम्बर की शांति, बुद्ध की करुणा, जीसस का प्रेम और महावी कर परम अङ्क्षहसा जब तक देश में नहीं होगी तब तक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती कुछ घंटे का ही खेल एवं मन का संतोष मात्र होगी। एक परंपरा ही बनी रह जाएगी।
महात्मा गांधी ने स्वयं का सुख त्यागकर अहिंसा के पथ पर चलकर हमें स्वतंत्रता दी। इस स्वतंत्रता का हमें क्या करना है यह सोचना जरूरी है। साध्वी अपूर्वा ने कहा अनंत ज्ञान, दर्शन, वीर्य एवं अनिर्वचनीय आनंद से परिपूर्ण हमारी विमल शुद्ध चेतना को कर्म वासना के आवरण ने मलिन बना लिया है। उसे निर्मल व पवित्र बनाने का हमारे भीतर रहे अनंत सामथ्र्य को जगाने का कार्य तीर्थंकर स्मरण करता है।