तिण्डिवनम्, विल्लुपुरम (तमिलनाडु): तमिलनाडु के राज्य के विल्लुपुरम् जिले के एक प्रसिद्ध नगर तिण्डिवनम् को पावन बनाने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ पहुंचे तो अपने आराध्य को अपने नगर में पाकर तिण्डिवनम्वासी निहाल हो उठे।
अपने आराध्य का भावभीना स्वागत को पूरा तिण्डिवनम् ही पलक पांवड़े बिछाए खड़ था। अपने आराध्य का भव्य जुलूस के साथ केवल तेरापंथी ही नहीं अपितु अन्य जैन समाज के अलावा जैनेतर लोग भी सोल्लास अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। स्थानीय विधायक सहित नगर के अन्य गणमान्य भी आचार्यश्री के स्वागत में खड़े थे। आचार्यश्री भव्य जुलूस के साथ नगर स्थित कुशलचन्द हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे।
शनिवार को प्रातः आचार्यश्री सारम गांव से मंगल प्रस्थान किया। सारम गांव के ग्रामीणों ने सुबह-सुबह आचार्यश्री के दर्शन किए तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीष प्रदान किया। आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर तिण्डिवनम् की सीमा के निकट पहुंचे तो सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित तिण्डिवनम्वासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनन्दन किया। भव्य जुलूस के साथ अपने आराध्य को नगर स्थित कुशलचन्द हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पहुंचे।
विद्यालय प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने अभिप्रेरित किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी का असली मित्र धर्म होता है। धर्म ही सच्चा मित्र होता है। अहिंसा, संयम और तप धर्म होता है। हिंसा, हत्या, गुस्सा, अहंकार, लोभ आदि आदमी के लिए शत्रुता की भूमिका निभाते हैं। आदमी कहीं भी रहे, धर्म को नहीं भूलना चाहिए।
संसार में मित्रता की बात चलती है। मित्र से आदमी को विभिन्न सहयोग भी प्राप्त हो सकते हैं। आदमी मित्र को निःसंकोच कुछ दे सकता है तो कुछ ले भी सकता है। अपनी गुप्त बात को बता देता है और मित्र की गुप्त बात को जान भी लेता है। मित्र के घर बिना बुलाए खा भी लेता है और खिला भी देता है। बच्चे, युवा बुजुर्ग सभी मित्र बनाते हैं।
आदमी का सबसे अच्छा और परम मित्र आत्मा को बनाया गया है। आदमी को अपनी आत्मा को मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। धर्माचरण करने वाली आत्मा आदमी की मित्र होती है तो पापाचरण में लगी आत्मा शत्रु के समान हो जाती है। आदमी को धर्माचरण के माध्यम से अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के पश्चात् तिण्डिवनम्वासियों को पहले अहिंसा यात्रा के संकल्प और उसके उपरान्त सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) स्वीकार कराई। शासनश्री साध्वी अजीतप्रभाजी की स्मृतिसभा के संदर्भ में आचार्यश्री संक्षिप्त अवगति प्रदान करते हुए उनके आत्म के प्रति मध्यस्थ भाव रखते हुए उनके आत्मोत्थान करते रहने की मंगलकामना की। शासनश्री साध्वी अजितप्रभाजी के संदर्भ में महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने भी मंगलकामना की। समणी मानसप्रज्ञाजी ने साध्वी अजितप्रभाजी के संदर्भ में विचार व्यक्त किए।
साध्वीश्री अजितप्रभाजी के संसारपक्षीय भाई श्री कर्णलाल चिप्पड़, चेन्नई तेरापंथी सभा के मंत्री श्री विमल चिप्पड़, तथा सुश्री प्राची नाहर ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। चिप्पड़ परिवार की महिलाओं ने गीत का संगान किया।
स्थानीय विधायक श्री मासीलामनी तथा सिनियर एडवोकेट श्री ए.शंकर ने आचार्यश्री का अपने नगर में स्वागत करते हुए आचार्यश्री का अभिनन्दन किया। तिण्डिवनम् सभा के अध्यक्ष श्री रमेश आंचलिया, पूर्व अध्यक्ष श्री उत्तमचंद आंचलिया तथा स्थानकवासी समाज के नेमीचंद मूथा ने अपनी आस्थासिक्त भावाभिव्यक्ति दी। महिला मण्डल, युवक परिषद तथा मूर्तिपूजक समाज की ओर सुश्री हर्षिता बाफना ने गीत के माध्यम से आचार्यश्री अभ्यर्थना की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी मुदित, जश और शिवानी ने आचार्यश्री के समक्ष कवितापाठ किया कर आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।