नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि देश विरति – जो ग्रहस्थ के अन्दर रहकर धर्म का पालन करते है सर्वविरति जो पंच महावत धारी है जो संयम लेकर धर्म का पालन करते हैl दोनों ही आत्मा के रज मैल धोने का काम करती है चार व्रतो को समझा, पाचंवा है परिग्रह। 9 प्रकार के परिग्रह है। शरिर के प्रति भी आसक्ति है, ममत्व है तो वह भी परिग्रह है शरीर के प्रति बहुत राग रहता है चाहे वो कैसा भी हो, वृद्ध हो, रोगी हो, चाहे कैसा भी पाप क्यों न हो, वह करने के लिए तैयार हो जाता है संसार के सारे पाप शरीर के लिए है। शरीर के प्रति लगाव है तो दिन रात आरम्भः समारम्भ करते है। शरीर का ख्याल रखते है आत्मा की चिन्ता नहीं करते है कितनों ने शरीर से ममत्व घटाया तो आत्मा का मेल दूर हो गया।
ज्ञानीज़न कहते हैं शरीर के ममत्व को छोड़ो क्योंकि शरीर कभी भी धोखा दे सकता है आत्मा का ख्याल रखो। आत्मा कभी भी छोड़के नहीं जायेगी। सबसे सुन्दर शरीर तीर्थंकंर, चक्रवती का होता है, उनमें अनन्त बल होता है लेकिन फिर भी शरीर साथ छोड़ देता है शरीर एक साधन है, धर्म करने के लिए शरीर को उतना ही आहार पानी दे जितना धर्म आसानी से कर सकता है। ज्ञानीजन कहते है जब तक शरीर निरोगी है तब तक धर्म आराधना कर लो फिर बाद में पछताना पड़ेगा नहीं तो उनकी गति सुगति से दुर्गति की हो जायेगी। शरीर के लिए जितनी मर्यादा परिग्रह चाहिये उतने की मर्यादा करो बाकी का प्याग करो।