वेलूर. बेरी बक्काली स्ट्रीट स्थित शांति भवन में विराजित ज्ञान मुनि ने कहा कि आत्मा की दृढ़ता शरीर की दृढ़ता पर निर्भर नहीं होती है। वह चाहे कृश शरीर में हो या दृढ़ शरीर में, उसका क्षयोपशम जितना शीघ्र होगा उतना ही अधिक ज्ञान-दर्शन प्राप्त कर सकेगा। आत्मा की पवित्रता के लिए शरीर की दृढ़ता या सौंदर्य कोई मूल्य नहीं रखता।
शरीर का वास्तविक मूल्य साधना से ही निर्धारित होता है। जो शरीर आत्मा की साधना में सहायक बनता है वही मूल्यवान कहलाने का अधिकारी है। इसके विपरीत शरीर आत्मा को नरक के द्वार पर पहुंचा देता है एवं भवभ्रमण बढ़ा देता है। वह कितना भी रूप संपन्न क्यों न हो उसका कोई मूल्य नहीं होता। दूसरों के कष्टों को अपना समझना ही सच्ची मानवता है।