चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने उत्तराध्ययन का मूल समझाते हुए कहा कि प्रभु भगवान महावीर ने संसार की असारता को जानकार आत्मकल्याण की भावना से अनेकों उदाहरणों के माध्यम से समझाया है।
उत्तराध्ययन के 18वें अध्याय में संयेती राजा के साथ 19 महान पुरुषों की चर्चा भी संक्षेप में बताई गई है। उन्होंने कहा कि कहा कि जिस परिवार के लिए धन एकत्रित कर रहे हैं, वह बंधुबांधव जीवित के साथी है मरने के बाद नहीं। इसलिए तुम इस नश्वर संसार की नश्वरता, अनित्यता को जानकार संभलो।
संयेती मुनि और क्षत्रिय मुनि के बीच संवाद चलता है। क्षत्रिय मुनि जिनशासन के एकांतवाद सिद्धांत का खंडन करके अनेकांतवाद की परिपुष्टिना करते हुई उनके प्रश्नों का समाधान करते हैं और अंत में तपश्चर्या करते हुए सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बनते हैं।
इसी प्रकार दशालभद्र राजा विचार करता है कि प्रभु दर्शनों को इस प्रकार रिद्धि और समृद्धि सहित जाऊं कि आज तक कोई नहीं गया है। वह पूरे नगर को सजाकर अपनी सेना, सहित सजधजकर, रिद्धि-समृद्धि का प्रदर्शन करते हुए प्रभु दर्शन को जाता है और इन्द्र उनके अभिमान को नष्ट करने के लिए अपनी समृद्धि सहित आता है।
राजा इन्द्र की विशाल समद्धि देख आश्चर्यचकित होता है तथा अभिमान त्यागकर प्रभु के पास संयम ग्रहण करता है। जब हम अपने से बड़ों की समृद्धि देखें तो उनसे ईष्र्या नहीं, प्रेरणा लेनी चाहिए कि इनके सामने हम कुछ भी नहीं है।
इन्द्र ने भौतिक समृद्धि में तो दशालभद्र राजा को परास्त कर दिया पर संयम संपदा की बराबरी नहीं कर सका, देव अविरती के काण व्रत ग्रहण नहीं कर सकते और सोचते हैं तथा संयम के आगे हार मानते हैं। जब भी संत-मिलन को जाएं तो माया, अभिमान छोड़कर जाना चाहिए न कि अपनी धन-संपदा का प्रदर्शन करने।
मृगापुत्र अपने महल में बैठे हुए राजपथ पर मुनि को जाते देखकर केवलज्ञान प्राप्त करता है और चिंतन करता है कि मैंने भी पांच महाव्रत पूर्व में सुने हैं। वह संसार से विरक्त होकर संयम लेने के भावों से माता-पिता के पास जाता है, जहां उसे संयम पथ की मुश्किलों के बारे में बताते हैं।
जिस शरीर की सुकोमलता की बात करते हैं वह अशुचि पदार्थों से भरा है, यह जीव का शाश्वत निवास नहीं है। मनुष्य देह दुख, क्लेशों भाजन पात्र है। इसे कभी न कभी छोडऩा ही पड़ेगा। पानी के बुलबुले और ओस की बंूद के समान नष्ट होनेवाला है।
जरा, मृत्यु, ग्रसित असार शरीर अनित्य है। संसार में जन्म, मरण, जरा, रोग का दुख सभी को लगे हैं, यहां किसी को शांति नहीं मिली है। इसलिए इस असार संसार में रहकर कैसे सुखी हो सकते हैं। चिंतन करें, इस शरीर की कितनी सार-संभाल करते हैं, यह एक दिन राख में बदलने वाला है। इसका ममत्व छोड़ आत्मा के कल्याण का चिंतन करें।
प्रभु ने मनुष्य जन्म की दुर्लभता को बार-बार अनेकों उदाहरणों से उल्लेखित किया है। जो मोक्षयात्रा पर धर्म का भाता साथ रखता है उसे मार्ग में कष्ट नहीं होता। आग लगने पर मालिक सार-सार बचाने की चेष्टा करता है और असार को छोड़ता है उसी प्रकार सारभूत आत्मा को संसार की दाहअग्नि से बचाना है।
धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने विभिन्न तप के पच्चखान लिए। अनेकों श्रद्धालुओं ने पुच्छीशुणं सम्पुट साधना और उत्तराध्ययन सूत्र का श्रवण किया। 19 अक्टूबर को दो दिवसीय एक्युपंचर चिकित्सा शिविर की शुरुआत तथा उड़ान टीम द्वारा बड़ी साधुवंदना प्रतियोगी परीक्षा होगी। 20 अक्टूबर को परीक्षा में विजेताओं का सम्मान होगा तथा रोल द कर्मा की स्टाल रविवार को लगाई जाएगी।