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शत्रुता को भूलाकर क्षमा को हृदय मे धारण करे – आचार्य महाश्रमण

शत्रुता को भूलाकर क्षमा को हृदय मे धारण करे – आचार्य महाश्रमण

कुंबलगोडू बेंगलुरु, कर्नाटक। पर्युषण के समय तप जपसाधनामय बिता। एक तरह से पर्युषण 7 दिन बाद संवत्सरी को शिखर पर आरोहण हुआ और आज यह क्षमापना दिवस शिखर पर ध्वजारोहण का दिन है। उपरोक्त विचार शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण दिन “क्षमापान दिवस” पर व्यक्त किए।

आचार्य श्री ने आगे कहा – किसी के प्रति भी हमारे मन में वैर भाव का भाव ना रहें। यह दिवस मन में में कटुता को धोने का अवसर है। हम वर्ष भर का सिहावलोकन करें। किसी के भी प्रति मन में शत्रुता का भाव ना रहे और संवत्सरी के महा स्नान में हम मैत्री का स्नान करें। पूज्य प्रवर ने तत्पश्चात तेरापंथ धर्म संघ की असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी से खमतखामना किये।

इसी कड़ी में गुरुदेव ने मुख्यमुनि महावीरकुमारजीमुख्य नियोजिका जी साध्वी विश्रुतविभा जी ,साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी से तथा जैन धर्म के अन्य संप्रदाय के आचार्य आदि मुनियों से, सकल श्रावक समाज से खमतखामना किये।

आचार्य तुलसी चेतना केंद्र में हो रहे श्रमापना दिवस के कार्यक्रम में सूर्योदय से पूर्व ही आचार्य श्री का पदार्पण हो गया। वृहद मंगलपाठ से पश्चात कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। मुनि दिनेश कुमार जी ने सर्वप्रथम मैत्री गीत का संगान किया।

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने  प्रेरणा देते हुए कहा कि जैन धर्म में मैत्री का बहुत बड़ा महत्व है। व्यक्त्व के क्रम मेमुख्यमुनि महावीर कुमार जी मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी एवं साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने भी भावाभिव्यक्ति दी।

कार्यक्रम मे आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मूलचंद नाहरमहामंत्री दीपचंद नाहरतुलसी चेतना केंद्रके अध्यक्ष सोहनलाल मांडोतअभातेयुप अध्यक्ष विमल कटारियाअणुव्रत समिति के अध्यक्ष कन्हैयालाल चिपड़पारमार्थिक शिक्षण संस्था के महामंत्री मदन जी तातेड़, अमृतवाणीमहामंत्री अशोक पारख, आवास संयोजक ललित आच्छा जीटीपीएफ अध्यक्ष हिम्मत मांडोत आदि अनेक गणमान्य वक्ताओं ने सभी से खमतखामना करते हुए अपने विचार रखे।

बेंगलुरु में रचा गया तप का नया कीर्तिमान

पर्युषण के अवसर पर महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण की सन्निधि में तपस्या की मानो झड़ी लग गयी। इस अवसर पर200 से अधिक तपस्वियों ने अठाई व नौ तक कि तपस्या की। महिलाओं में दो और पुरषों में एक तेरहरंगी हुई। संवत्सरी के दिन हजारों लोगों ने उपवास किया तो मौसम भी मानो रिमझिम बरसात से तप अनुमोदन कर रहा था। इस बार नवयुवकों में भी गजब का उत्साह था अनेक किशोरों ने अठाईनौ ओर तेरह से  आगे की तपस्या की।

खमतखामना का दृश्य देख हर कोई हुआ अभिभूत

कार्यक्रम में खमतखामना के दृश्यों को देखकर दर्शक जन अभिभूत हो रहे थे। इस अवसर पर साधु साध्वियों ने सामूहिक रूप से खमतखामना किया। संतो की ओर से मुनि दिनेश कुमार जी ने पाठ का वाचन किया एवं साध्वियों की ओर से साध्वी जिनप्रभा जी ने खमतखामना के पाठ का वाचन किया।

पर्युषण काल मे बही धर्म की धारा 

पर्युषण काल में आचार्य श्री महाश्रमण की सन्निधि मे धर्माराधना करने हेतु केवल बेंगलुरु के ही नहीं अपितु मैसूरमंड्या,चिकमंगलूर चेन्नई सहित दक्षिण भारत के अनेक क्षेत्रों से भी सेंकड़ों श्रद्धालु यहाँ उपस्थित थे।  संवत्सरी के मुख्य कार्यक्रम के दिन लगभग 18000 लोगों की उपस्थिति रही। साथ ही पुरुषों में 1100 से अधिक पौषध एवं महिलाओं में 2000 से अधिक पौषध हुये।

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