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शत्रुता के भाव रखने वालों को भी समझे मित्रवत : आचार्य महाश्रमण

शत्रुता के भाव रखने वालों को भी समझे मित्रवत : आचार्य महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-अहिंसा यात्रा के प्रणेता-महातपस्वी, महाप्रज्ञ पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल पाथेय में फरमाते हुए कहा कि जो व्यक्ति अहिंसा का साधक होता है वह उसके प्रति शत्रुता रखने वाले लोगों के लिए भी आक्रोश का भाव नहीं रखता, उन्हें भी मित्रवत मानता है।

आचार्य तुलसी के 106 वें जन्मदिवस अणुव्रत दिवस के अवसर पर फरमाया कि महापुरुषों को जन्म देने वाली माताएं धन्य होती है। जन्म तो हर व्यक्ति लेता है यह कोई विशेष बात नहीं होती। विशेष बात यह होती है कि वह जन्म लेने के बाद क्या करता है !

उन व्यक्तियों का जन्मदिवस बनाने लायक हो जाता है जो स्वयं के आत्म कल्याण के साथ दूसरों के कल्याण के लिए श्रम और समय नियोजन करते हैं और लोगों का कल्याण करते हैं। आचार्य तुलसी ने अपने जीवन में न केवल तेरापंथ धर्मसंघ बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए अनेकानेक कार्य किए, धर्मसंघ को विशिष्ट अवदान प्रदान किए।

 आचार्य तुलसी ने मुनि अवस्था में साधुओं को अध्ययन कराने का कार्य किया और 22 वर्ष की अल्प अवस्था में तेरापंथ धर्मसंघ का आचार्य पद आरोहण किया था जो अपने आप में एक विलक्षण घटना है। आचार्य मनोनयन के पश्चात उन्होंने अपने दायित्व को विशिष्ट रूप में आगे बढ़ाते हुए धर्म संघ को अणुव्रत के रूप में विशेष अवदान दिया जो मानव को मानवता की राह दिखा रहा हैं।

आज ही के दिन साधु श्रेणी से इतर विशेष श्रेणी समण श्रेणी की स्थापना उन्होंने की थी जो न केवल देश में बल्कि विदेश में भी धर्म संघ की प्रभावना कर रही है। आचार्य तुलसी को अपने जीवन में अनेक प्रकार की प्रतिकूलताएं भी मिली इस पर उन्होंने एक महत्वपूर्ण उद्घोष दिया कि “जो हमारा करे विरोध, हम समझे उसे विनोद”। उनका मानना था कि विरोध के प्रति दुर्भावना न रखी जाए सद्भावना बनी रहे।

आचार्य तुलसी ने अनेक व्यक्तित्वों का निर्माण किया इस दिशा में उन्हें व्यक्तित्व निर्माता कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आचार्य तुलसी ही तेरापंथ धर्मसंघ के एकमात्र आचार्य थे जिन्होंने अपने शिष्य को अपने जीवन काल में आचार्य बनाकर विसर्जन भावना का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। लोगों को तुलसी और महाप्रज्ञ को एक रूप में समझने की प्रेरणा देते थे। आचार्य तुलसी का जीवन संघर्षमय रहा उनके जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता भी रही।

वह प्रायः फरमाते थे कि अनुकूलता में अहंकार नहीं आए इसलिए उनके जीवन में प्रतिकूलता भी आती रहती थी। छोटी अवस्था में उनके आचार्य बनने के विषय में आचार्य महाश्रमण जी ने फरमाया कि गुरु की कृपा मिलना अलग बात है परंतु उस कृपा के अनुसार बन जाना विशेष बात है जो आचार्य तुलसी के रूप में हमने देखा है।

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने आचार्य तुलसी के जन्म दिवस के विषय में फरमाते हुए कहा कि आचार्य तुलसी चांद के समान थे वे स्वयं तो अंधेरी रात में रोशनी फैलाते ही थे परंतु उनके साथ उनके शिष्य और श्रावक भी ग्रह नक्षत्रों की तरह प्रकाशमान हो जाते थे।

उन्होंने अपने जीवन में अनेक साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं को कार्यकर्ताओं के रूप में तैयार किया। आचार्य तुलसी अनुशासन प्रिय, विलक्षण व्यक्तित्व के धनी, नई सोच के साथ धर्म संघ की प्रभावना करने वाले आचार्य थे। साध्वीप्रमुखाजी ने विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से उनके कर्तृत्व को याद किया और तेरापंथ धर्म संघ को विश्वव्यापी बनाने में उनके विशिष्ट योगदान पर अपनी भावना व्यक्त की।

प्रवचन में, समणी वृंद मुमुक्षु बहनों  द्वारा गीतिका की प्रस्तुति की गई। समणी कुसुमप्रज्ञाजी द्वारा आचार्य तुलसी के जन्मदिवस पर अपनी भावाभिव्यक्ति दी गई। आचार्य महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति द्वारा कृतज्ञता के स्वरों में श्री प्रकाशचंद बाबेल श्री गौतमचंद मुथा,श्री हनुमान मल जी गादिया, श्री जुगराज जी सोलंकी द्वारा श्री चरणों में अपनी भावनाएं , प्रस्तुत की। संचालन मुनिश्री दिनेश कुमारजी ने किया।

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