नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि संसार के जीवों को भव सागर से तारने के लिए भगवान महावीर ने ऐसे धर्म का निरूपण किया और ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जिसे अपनी इच्छानुसार अनुसरण करने का निश्चय जीवों पर छोड़ दियाl जिसने भी इस धर्म का व्रतों का चाहे पूर्ण रूप से, चाहे आंशिक रूप से पालन किया या पालन करेगा वह अवश्य ही भव सागर से पार हो सकेगा। दिशाओं की मर्यादा कर उपभोग – परिभोग के साधनों की मर्यादा करने में कोई कठिनाई नहीं होती। आसानी से ये व्रत धारण कर सहज ही पाप बंध से बचा जा सकता है।
विपरीत द्रव्यों के मेल से बने पदार्थों के खाने से शरीर में विकार उत्पन्न होते है। आनन्द श्रावक के 26 बोलो की जीवन पर्यन्त के लिए ऐसी मर्यादा रखी कि उन्हें 14 नियम प्रतिदिन चितारने की आवश्यकता नही पड़ी हमें भी ऐसी मर्यादा रखने की प्रेरणा लेनी चाहिए।