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ज्ञान वाणी

व्यक्ति धर्म से महान बनता है धन से नहीं

चेन्नई. संसार में दो तरह के पदार्थ होते हैं-एक मुख्य और दूसरा प्रथम। युद्ध संग्राम में सैनिक के लिए तलवार मुख्य है जबकि युद्ध की घोषणा करना, मस्तक पर तिलक लगाना, मंगल कामना करना प्रथम हैं। रोगी के लिए दवाई मुख्य और पथ्य प्रथम है। इलाज ले और परहेज नहीं रखे तो वह जल्दी स्वस्थ नहीं होता। वैसे ही मोक्ष के लिए यथास्थान चारित्र मुख्य है और समकित प्रथम।

सम्यकत्व की नींव के बिना यथास्थान चारित्ररूपी महल प्राप्त नहीं होता। इस जगत में मिथायत्वी मनुष्य ज्यादा हैं समदृष्टि कम। दुनिया में अनेक तरह के बल इन्सान के पास हैं रूप, धन, सत्ता का बल, परन्तु ये बल स्थायी नहीं हैं। इन बलों का अंत सुखद भी हो सकता है और दुखद भी। सम्यकत्व को साध्वी ने फाइव-इन-वन बताते हुए कहा कि पांच धाराओं का नाम सम्यकत्व है सम, संवेद, निर्वेद, अनुकंपा और आस्था। मुक्ति के तीन मुसाफिर हैं सम्यकदृष्टि, श्रावक व साधु।

संसार एक जेल है, कर्मों की बेडिय़ां हैं। अपराधी को कैदखाने में डाला जाता है और पागल को पागलखाने में। संसाररूपी कैदखाने से सम्यकदृष्टि शीघ्र रिहा होकर बाहर निकल जाता है और मुक्ति का मंगल प्राप्त कर लेता है परन्तु मिथ्यादृष्टि संसार के पागलखाने में गोता लगाता रहता है। सम्यकत्व के बल पर मुक्ति का महल प्राप्त करना है।

साध्वी सुप्रतिभा ने कहा अहं गलेगा तभी धर्म जगेगा। व्यक्ति धन से नहीं धर्म से महान बनता है। धर्म कभी धोखा नहीं देता बल्कि धोखेबाज को संभलने का मौका देता है। यह धर्म जन्म मरण से मुक्ति दिलाने वाला दिव्य मंत्र है। धर्म से जीवन हरा-भरा एवं व्यवहार खरा-खरा एवं परिवार खिला-खिला रहता है।

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