आज विजय नगर स्थानक में माहसाध्वी श्रीप्रतिभाश्रीजी म सा ने निंदा के ऊपर बहुत ही मार्मिक बात कही साध्वी श्री जी ने फरमाया कि व्यक्ति तीन प्रकार के होते हैं पहला निंदनीय है जो सिर्फ निंदा करता है सभी मे सिर्फ गलतियों को ही देखता है।दूसरा वंदनीय है जो अच्छे कार्यो की ओर देखता है व प्रशंसा करता है,तीसरा अभिनंदनीय जो अपनी उच्चता से श्रेष्ठतम कार्य करके सम्यक्त पुरुषार्थ करके मोक्ष को प्राप्त करता है निंदा करने वाले व्यक्तियों की दृष्टि सदा बुराइयां देखने में ही रहती है व्यक्ति को स्वयं की निंदा करनी चाहिए, जो व्यक्ति आत्म चिंतन से स्वाध्याय करता है जो स्व में रमण करता है वह निंदा से दूर रहता है स्व निंदा करने से मनुष्य केवल ज्ञान को प्राप्त कर सकता है जैसे मृगावती ने स्वयं निंदा की जिससे उसको केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई ।
साध्वी श्रीदीक्षिता श्री जी ने चौथे आरे दुखमा एवं सुखमा का वर्णन बताते हुए आगमों का ज्ञान करवाया।साध्वी प्रेक्षाश्रीजी ने कहा की क्रोध से प्रीत वात्सल्य तथा अपनेपन का नाश होता है क्रोध भयानक अग्नि के समान होता है जैसे अग्नि के पास यदि कोई जाता है तो वह स्वयं की हानि कर बैठता है। छदमस्त व्यक्ति 6 प्रकार के कषायों क्रोध मान माया लोभ राग और द्वेष से दूर रहता है छदमस्त व्यक्ति ही सन्मार्ग पर चलते हुए मोक्षगामी होता है।साध्वीश्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि अनंतानुबंधी क्रोध पर्वत में पड़ी दरार के समान होता है।जो कभी मिट नही सकती।वैसे ही जीव क्रोध करके अनन्त भवों में बहकर नरक में हिंसक त्रियञ्च जीव की गति को प्राप्त करता है।गुरु के क्रोधीपन से उसे त्रियञ्च गति में चन्डकौशिक सर्प का जीवन मिला। पर भगवान महावीर को जब उसने अपने क्रोध से काटा तो दूध की धार निकल पड़ी और उसे क्षमा कर दिया।तथा पुनः उसे सदगति प्राप्त हुई। संचालन संघ के मंत्री कन्हैया लाल सुराणा ने किया।