चेन्नई. थाउजेंड लाइट जैन स्थानक में विराजित जय धुरंधरमुनि ने कहा जीवन में कुछ पाना है तो उसके लिए कुछ खोना भी पड़ता है। संघर्ष करने वाला ही महापुरुष बन सकता है। सहन शक्ति के अभाव में व्यक्ति थोड़े से दुख में भी विचलित हो जाता है।
धर्माराधना एवं तपस्या से सहन शक्ति का विकास होता है, क्रोध आवेग में जाने का मूल कारण सहनशीलता की कमी है। दुखों से भागने के बजाय उनसे संघर्ष करना चाहिए, शरीर साधना का साधन होने से इसकी सुरक्षा करना जरूरी है पर उसके प्रति अत्यधिक आसक्ति रखने से वह सुकोमल बन जाता है। व्यक्ति को सुकोमल नहीं अपितु सहनशील बनना चाहिए।
जो शरीर को ज्यादा महत्व देता है वह समत्व में नहीं रह सकता। शरीर रोगों का घर है, कितना ही प्रयत्न किया जाए वह नष्ट अवश्य होगा। असाता वेदनीय धर्म के उदयवश बीमार होने पर व्यक्ति को हाय त्राय करते हुए व्याकुल नहीं होना चाहिए, इससे किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
शरीर को जैसा चाहे ढाला जा सकता है। वर्तमान में शारीरिक श्रम के अभाव से रोगों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है और व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती जा रही है। व्यक्ति को उद्यान के सुकोमल फूल नहीं अपितु जंगल के पौधे सम बनना चाहिए जो बिना पानी भी लंबे समय तक रह सकता है। जिसने सहन किया उसी का अस्तित्व रह पाता है।
बच्चों को कमजोर बनाने की वजह हर परिस्थिति का सामना करने हेतु सक्षम बनाना चाहिए। सहन करने के कारण ही पत्थर मूर्ति का रूप एवं मिट्टी घड़े का रूप धारण कर पूजनीय बन सकती है। भगवान महावीर ने स्वयं राजपाट का त्याग कर संयम के कंटकीर्ण के पथ पर अपने कदम बढ़ाए थे। मुनिगण यहां से प्रस्थान कर रायपेट्टा स्थित सिंघवी भवन पहुंचेंगे।