चेन्नई. किलपॉक स्थित कांकरिया भवन में साध्वी मुदितप्रभा ने कहा पैसा पुण्यार्जन में भी उपयोगी है तो पैसों का दुरुपयोग पाप का बंध भी करा देता है। धन का राग व्यक्ति को परिग्रही बना देता है और धन से वैराग व्यक्ति को महादानी भी बना देता है।
व्यक्ति धन से संघ व समाज में पद पर तो आरोहण कर सकता है पर किसी के दिल में स्थान प्राप्त नहीं कर सकता। पैसे से पद पाया जा सकता है पर आदर सम्मान नहीं। प्राप्त धन का दुरुपयोग कर सकते हैं तो सदुपयोग भी किया जा सकता है। हमारी प्रार्थना होनी चाहिए कि सार्इं इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाय। मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय।
संतोषी सदा सुखी रहता है। पैसा कहता है मैं तुम्हारे साथ ऊपर तो नहीं चलूंगा पर मेरे सदुपयोग से मैं तुम्हारा जीवन ऊंचा बना दूंगा। मिले हुए धन का उपयोग किसी के ज्ञानदान, अनुकम्पा दान व जीवन निर्माण में कर लेना ही श्रेयस्कर है। ज्ञानीजन कहते हैं कि पुण्यवानी से प्राप्त अर्थ का सही अर्थ नहीं निकाला तो जीवन का अर्थ यूंही निकल जाएगा। अर्थ का दुरुपयोग जीवन को अनर्थ कर देता है।
अर्थ का सदुपयोग मानव के रूप में हमें भगवान बना देता है तो अर्थ का दुरुपयोग शैतान भी बना देता है। सही रूप से उपयोग करने पर पैसा पुण्य व शुभ कर्मो का बन्ध कराता है और अनावश्यक रूप से पैसे का दुरुपयोग करने पर पाप व अशुभ कर्मों का बन्ध भी करा देता है। हम अपना अपना अवलोकन स्वयं ही कर ले कि हम किस श्रेणी में हैं और हमें किस श्रेणी में रहना चाहिए।
अपने बंगले में अनावश्यक फर्नीचर पर खर्च करने के बजाय किसी गरीब की झोपड़ी में मरम्मत करवा करके उसकी दुआ लें, अलग ही सुख की अनुभूति होगी। अमीरों की अमीरी उनके विवेक रूपी सद्बुद्धि के धन, शील की सम्पत्ति व सदाचार की तिजोरी में होती है।