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व्यक्तित्व में निखार के लिए करें सम्यक पुरुषार्थ: साध्वी कंचनकंवर

व्यक्तित्व में निखार के लिए करें सम्यक पुरुषार्थ: साध्वी कंचनकंवर

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा कर्म का महत्व देखा जाए तो आत्मा के सामने रज करण के समान है। जैसे कोई श्रेष्ठी गरीब को सहारा देता है और वह एक दिन स्वयं को श्रेष्ठी से बड़ा समझने लगता है ठीक ऐसे ही ये कर्म रज हैं, आत्मा ने इनको सहयोग दिया और ये आत्मा के सिर पर चढ़कर बोलते हैं।

ज्ञानीजन कहते हैं कि कर्म के समय पूर्ण विवेक रखना, क्योंकि कदम-कदम पर कर्म हमारे साथ बंध होते हैं। कर्म शुभ होने चाहिए इसका ध्यान रखें।

उन्होंने कहा सफलता के मार्ग में चौथा समवाय पुरुषार्थवाद है। दार्शनिक कहते हैं कार्य में सफलता पुरुषार्थ से ही मिलती है। समुद्र में बहुमूल्य रत्न हैं लेकिन उन्हें पाने के लिए पुरुषार्थ करना होगा, गहराई में उतरा पड़ेगा, ऐसे ही जीवन में पुरुषार्थ का महत्व है।

व्यक्ति को व्यक्तित्व में निखार करने के लिए सम्यक पुरुषार्थ करना होगा। पुरुषार्थ में उसे जाग्रत रहना है। पुरुषार्थ भी धर्म के लिए करना चाहिए अर्थ और काम के लिए नहीं। चारों पुरुषार्थ में धर्म को नींव कहा गया है और मोक्ष को शीर्ष। पांचवां समवाय नियतिवाद कहता है कि रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती ही है।

साध्वी डॉ.हेमप्रभा ने आत्मविकास की दृष्टि से चार भूमिकाएं बताई- अहं से अर्हम की यात्राएं। प्रथम स्थिति अहं है,जो आत्मा को परमात्मा नहीं बनने देती। परम पद को प्राप्त करने के लिए हमें अहंकार छोडऩा होगा। दूसरी स्थिति दासोहं में व्यक्ति अपने आप को गौण समझ भगवान को स्वामी समझता है, देव और गुरु की श्रेष्ठता को स्वीकारता है।

जो सबके सामने झुकता है वह प्रभु को अच्छा लगता है। लघुता से ही प्रभुता को पाया जा सकता है। इस अवस्था में शिष्य का समर्पण भाव होता है। तीसरी कक्षा सोहम में जो परमात्मा की अवस्था है वही आत्मा की अवस्था होती है। इतना अंतर है कि परमात्मा ने अपनी अवस्था को प्रकट कर लिया है।

जो तू है वही मैं हंू। दोनों की आत्मा में कोई अन्तर नहीं है, सिर्फ कर्म का ही अन्तर है। परमात्मा ने मुक्ति प्राप्त कर ली है और मैं मुक्ति पाने के मार्ग पर अग्रसर हंू। भक्ति की यह स्थिति तत्व की भाषा में शुक्ल श्रेणी की अवस्था और मोक्ष के नजदीक जाना जाता है। परमदशा को हासिल करने की ओर अग्रसर है।

चौथी कक्षा है अर्हम। यह आत्मा की अहं से अर्हम की यात्रा का अंतिम पड़ाव है। अर्हंत प्रभु की भक्ति करनेवाले निश्चित एक दिन अर्हंत पद प्राप्त करते हैं।
15 अगस्त को प्रात: 9 बजे से रक्षाबंधन पर विशेष सामूहिक कार्यक्रम और हस्तनिर्मित राखी, थाली सजावट तथा अनेक प्रकार की प्रतियोगिताएं होगी।

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