महोपाध्याय श्री ललितप्रभ महाराज ने कहा कि वैभव कितना ही महान क्यों न हो, पर वह तप और त्याग से ज्यादा कभी भी महान नहीं हो सकता। भले ही सिकन्दर के पास महावीर से हजार गुना ज्यादा वैभव था, पर वह महावीर के त्याग से कभी महान नहीं कहलाएगा। जिसने वैभव को केवल इकठ्ठा किया वह सिकन्दर बना, पर जिसने वैभव को भी हँसते-हँसते त्याग कर दिया वह महावीर बन गया।
एक तरफ सिकन्दर की मूर्ति हो और दूसरी तरफ महावीर की मूर्ति, यह सिर श्रद्धा से तो महावीर के चरणों में ही झुकेगा। उन्होंने कहा कि भारत तप और त्याग की भूमि है। यहाँ समृद्धि का सम्मान होता है, पर पूजा हमेशा त्याग की होती है। यह सत्य है कि दुनिया सम्पन्नता से प्रभावित होती है और सम्पन्न व्यक्ति ही सब जगह मुख्य अतिथि बनता है, पर वह भी जब किसी त्यागी-तपस्वी को देखेगा तो उसका सिर अपने आप तपस्वी के आगे झुक जाएगा।
श्री ललितप्रभ कोरा केन्द्र मैदान में आयोजित सत्संग महाकुंभ के तहत ‘कैसी करें तपस्या, जो सुलझाए जीवन की समस्याÓ विषय पर जनमानस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज का इंसान इच्छाओं और वासनाओं के चक्रव्यूह में फँसता जा रहा है। इंसान के पास सब कुछ है, पर मन में तृप्ति का कहीं कोई नामोनिशान नहीं है। 28 साल का युवक भी इच्छाओं में उलझा है तो 88 साल
का बुजुर्ग भी इच्छाओं से मुक्त नहीं हो पाया है।
उन्होंने कहा कि आवश्यकताएँ तो फकीर की भी पूरी हो जाती है, पर इच्छाएँ तो बादशाह की भी
अधूरी रहती है। आज के इंसान की दो कमजोरियाँ हैं – दमड़ी और गोरी चमड़ी। धन और सुंदर महिला को देखते ही इंसान का मन काला हो जाता है। वैसे तो इस दुनिया में सब ईमानदार है, पर तभी तक है जब तक बेईमानी का मौका नहीं मिलता।
सबसे बड़ा तप : इच्छाओं का त्याग – संतप्रवर ने कहा कि तपस्या का मतलब केवल उपवास या भोजन का त्याग नहीं है वरन् इच्छाओं का निरोध करना जीवन की सबसे बड़ी तपस्या है। तन तो तप गया, पर मन न तपा तो तपस्या का क्या मतलब? तन तो मन को साधने का साधन मात्र है। जैसे मक्खन तपाने के लिए बर्तन को तपाना जरूरी है ठीक वैसे ही मन को साधने के लिए तप को अपनाना जरूरी है।
जैसे छोटे से अंकुश से हाथी वश में हो जाता है ठीक वैसे ही तपस्या के द्वारा तन और मन को वश में किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर उनके साथ होते हैं जो तन, मन और चेतना को तपाते हैं। जो तपता है, जपता है, भजता है उसके सामने तो भगवान भी झुकता है। संतप्रवर ने कहा कि शारीरिक तप है- व्रत, उपवास, पवित्रता, सरलता, ज्ञानीजनों का सम्मान, ब्रह्मचर्य और अहिंसा का पालन। मानसिक तप है- मन की प्रसन्नता, शांत भाव, मौन, आत्म संयम, भाव-विशुद्धि, ईश्वर और शास्त्र के प्रति अनन्य श्रद्धा।
उपवास में कु छ बातों का रखें ध्यान – उपवास करने वालों से संतप्रवर ने कहा कि उपवास के पहले दिन तीन बातों का ध्यान रखें – गरिष्ठ भोजन से बचें, मिर्च-मसालेदार भोजन न करें और दाम्पत्य सेवन का त्याग करें। उपवास के दिन क्रोध न करें, आत्मप्रशंसा से बचें और निंदा का त्याग करें। उपवास में तीन काम जरूर करें – शास्त्रों का स्वाध्याय, आत्मस्वरूप का चिंतन और शील का पालन। अठ्ठाई अथवा मासक्षमण जैसी बड़ी तपस्या करने वालों को संतप्रवर ने प्रेरणा दी कि वे प्रलोभन में आकर तपस्या न करें, तपस्या का प्रदर्शन करने से बचें और हमारे कारण घरवालों को कोई जीमण-जूठन का छातीकूटा न करना पड़े इसका विवेक रखें।
भूख से दो कौर कम खाना भी तपस्या-संतप्रवर ने कहा कि अगर हम उपवास नहीं कर सकते तो भूख से दो कौर कम खाएँ यह भी उनोदरी नामक तप है। कम खाने से इंसान ज्यादा स्वस्थ रहता है। तपस्या के अन्य रूप बताते हुए संतप्रवर ने कहा कि मौनपूर्वक भोजन करें, महिने में एक दिन नमक या स्वादिष्ठ वस्तु का त्याग करें और हो सके तो रात को खाना छोड़ दें। जो दिन में खाते हैं वे देवता कहलाया करते हैं। जो रात को नहीं खाता उसे दो दिन में एक उपवास करने का लाभ मिल जाता है। संतप्रवर की प्रेरणा से अनेक श्रद्धालुओं ने रात्रिभोजन न करने का मानस बनाया।
जीवन में लाएँ तपस्या का संस्कार-संतप्रवर ने कहा कि हमारे जीवन में तपस्या का संस्कार जरूर होना चाहिए। जो तपस्या करता है वह अनेक समस्याओं से स्वत: बच जाता है। तपस्या के छोटे-छोटे रूप बताते हुए संतप्रवर ने कहा कि झूठ न बोलना वाणी का तप है, दूसरों के काम आना काया का तप है, किसी की सोने की अंगूठी मिल जाने पर उसे वापस लौटा देना मन का तप है।
बड़े-बुजुर्गों के आने पर खड़ा होना, उन्हें सम्मान सहित बिठाना विनय तप है, सोने से पहले कुछ समय अच्छी किताबों को पढऩा स्वाध्याय तप है, गलती हो जाने पर माफी मांगना प्रायश्चित तप है, मन-वचन-काया को स्थिर कर आती-जाती श्वासों को देखना ध्यान तप है, मच्छर काटने पर या तन में व्याधि का उदय होने पर शांति-समता रखना कायोत्सर्ग तप है।
दिव्य सत्संग की शुरुआत ने छत्तीसगढ़ के श्री पवन जैन, बैंगलोर के श्रीमती इंद्र जैन एवं चातुर्मास समिति के सदस्यों ने दीपप्रज्वलन के साथ किया। महामंत्री मनोज जी बनवट ने बताया कि कोरा केन्द्र मैदान में मंगलवार को प्रात: 8.45 बजे श्री ललितप्रभ प्रभु तक कैसे पहुँचाएँ अपनी प्रार्थना विषय पर जन समुदाय को संबोधित करेंगे।