ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि वैभव शब्द बड़ा आकर्षक, मोहक एवं नैतिक शब्द है। वैभव को समझने के लिए विभु को समझना जरूरी है। विभु बनकर ही वैभव पाया जाता है। वैभव दो प्रकार के हैं आंतरिक व बाह्य।
उन्होंने कहा कि सहनशीलता कड़वी होती है परन्तु उसका फल मीठा होता है। सहनशीलता का टॉनिक बाजार में नहीं मिलता। इसके लिए स्वयं को पुरुषार्थ करना होता है। सहनशीलता का उल्टा है उत्तेजना, 18 पापों में अधिकांश पाप उत्तेजना के होते हैं।
नारी सहनशीलता की जीती जागती मिसाल है। नव माह तक गर्भ का प्रतिपालन करने के बाद मां का गौरवशाली पद प्राप्त करती है। अपने घर परिवार में शांति से रहने के लिए मिलकर रहना, सम्यक कहना व सब कुछ सहना।
साध्वी अपूर्वा ने कहा कि जीवन एक दावत है। मित्रता स्वीट डिश। सच्चे मित्र हीरे की तरह कीमती। झूठे मित्र पतझड़ के पत्तों की तरह। मानव जगत सभ्यता एवं संस्कृति का जगत है। इसमें दोस्ती की संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जिसमें हर पहचान घुल मिल जाती है।