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वैज्ञानिक साधनों से आध्यात्मिक नुकसान: विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा

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सुंदेशा मुथा जैन भवन कोंडितोप में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा ने कहा कि:- जीवन में से श्रम गया :-जो कर्म अत्यधिक श्रम साध्य था , वह वैज्ञानिक साधनों से खुब सरल easy हो गया ।

पहले भोजन बनाने में घंटो का श्रम था अब वो ही भोजन बात करते -करते सहजता से तैयार हो जाता है। एक गांव से दूसरे गांव जाने में घंटो लगते थे परंतु आज चंद क्षणों में पहुँचा जा सकता है। विज्ञान ने मानवी के जीवन में से श्रम को कम किया , परंतु इसका कटु परिणाम यह आया कि उसका जीवन श्रममुक्त हो गया , जिसके फलस्वरूप उसके जीवन में अनेक प्रकार की बीमारियां घर कर गई ।

जीवन में श्रम के कारण मनुष्य कई रोगो से आसानी से बच जाता था अथवा कई रोग उससे दुर ही भागते थे । जीवन में से श्रम के चले जाने से कई रोगों का हमला चालू हो गया । मानवी श्रम मुक्त बना तो साथ में रोगग्रस्त बन गया ।


भोगो की भूख बढ़ी-विज्ञान के साधनों ने मानवी के भोग की भूख को खुब बढा दी है पहले प्रचार advertise के साधन कम थे तो दुर देशों में उत्पन्न हूई वस्तु की लोंगो को कोई जानकारी नहीं थी। आज t.v व विज्ञापन के साधनों के माध्यम से दुर -सुदूर क्षेत्रों में पैदा होने वाली वस्तु की जानकारी मानवी को सहज मिल जाती है।

इसके फलस्वरुप मानवी के भोग की भूख खुब बढ़ी है। विज्ञान ने मानवी को खुब भोगरसिक बनाया है। पराधीनता बढ़ गई:-अपने हाथो से कुछ भी काम करने में काफी समय लगता है और श्रम भी अधिक होता है । परंतु वो ही काम वैज्ञानिक साधनो द्वारा चंद क्षणों में हो जाता है। उन साधनो के उपयोग से मानवी धीरे-धीरे उन साधनों का गुलाम बन गया परिणाम स्वरुप उसका जीवन पराधीन हो गया ।


वह घंटो तक बस के लिए इन्तज़ारी कर लेगा , परंतु बस के न आने पर भी 5 किमी पैदल नही चलेगा। एक लाईट चली जाती है और मनुष्य के सारे काम ठप्प हो जाते है। सहनशक्ति घट गई-वैज्ञानिक साधनों के प्रयोग से कोई भी कार्य आसानी से और शीघ्र हो जाता है। परंतु जब परिस्थिति वश वह काम सगम पर नही हो पाता है, तब व्यक्ति खुब अधीर बन जाता है। आगे चलकर वह कोप का शिकार बन जाता है।

उसकी असहिष्णुता खुब बढ़ जाती है। सुंदर संगीत का प्रोग्राम चल रहा हो और अचानक लाईट चली जाती है और सार प्रोग्राम अपसेट हो जाता है। व्यक्ति का मूड आउट हो जाता है। 50 की स्पीड से गाडी चल रही हो , अचानक गाडी खराब हो जाती है और गंतव्य स्थान में पहुचने में देरी हो जाती है। और व्यक्ति हताश व निराश हो जाता है आगे चलकर गुस्से में आ जाता है और कुछ भी न करने का कर डालता है।


सदाचार को हानि-गर्भ निरोध के साधन, गर्भाशाय का ऑपरेशन और गर्भपात का ऑपरेशन इन साधनों ने मानवी को सदाचारी मिटाकर दुराचारी बना दिया। इन साधनों ने मानवी को भोगसुखों में आसक्त बना दिया। टी. वी , वीडियो व अश्लील -फिल्मो के दृश्यों ने मानवी की कामवासना को ख़ूब खूब उत्तेजित किया है स्त्रियाँ शीलभ्रष्ट हो गई और पुरुष दुराचारी बन गए ।

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