Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

वैज्ञानिक युग है इसलिए सूचना पहले पहुँच जाती है: पुज्य जयतिलक जी मरासा

वैज्ञानिक युग है इसलिए सूचना पहले पहुँच जाती है: पुज्य जयतिलक जी मरासा

रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने फरमाया कि 12 व्रत का विवेचन चल रहा है! 11 व्रतो का विवेचन व पच्खान हो चुका है। 12 वाँ व्रत का विवेचन – अतिथि संविभाग व्रत:- अर्थात जिसके आने की कोई तिथि न हो। सुचुना न हो! आज के युग में पहले से ही पूरा विवरण साधु संतों के विहार का मिल जाता है! वैज्ञानिक युग है इसलिए सूचना पहले पहुँच जाती है। यदि साधु साध्वी अचानक पहले पहुंच जाते है तो हड़बड़ा जाता है। श्रावक श्राविका का कर्तव्य है कि आहार ग्रहण करने से पूर्व और बाद में घर के द्वार खुले रखे ! भावना भाए।

आहार काल में घर बैठे भावना भाते रहो तो वह फलीभूत होगी! भावना भाने का भी विवेक है। घर में बैठे भोजन करने से पहले दो मिनट इंतजार करे। गुरु भगवंत पधारे या नहीं, आहार बहरावे या नहीं आपको तो भावना भाने से लाभ मिल जाता है। भावना शुद्ध रखे अन्यथा नाग श्री ब्राह्मण की दुखित भावना से संसार बढ़ गया! देने वाले दाता की भावना उत्कृष्ट हो। कषाय के वेग में श्रावक घर के द्वार बन्द कर दे तो मन का द्वार भी बंद हो जाता है। जब गुरु भगवंत पधारे तो सूझता आहार से प्रतिलाभित करे। साधु के भी मर्यादा होती है! व्रत पच्खान होते है। जहाँ उनको अनुकुलता होगी वहाँ आहार ग्रहण कर लेते हैं। किंतु आपके भाव उत्कृष्ट हो! यदि संजोग नहीं बना और उससे जो पश्चाताप होता है उससे महान कर्म निर्जरा होती है।

भगवान ने जितनी भी विधी बताई वह कर्म निर्जरा के हेतु ही है। कर्म निर्जरा का प्रयास करें। जैसे जैसे निर्जरा होगी तो आपको लाभ भी मिल जायेगा। विवेक रखे यदि नहीं रखे तो हानि दोनो तरफ से होती है! मम्मण सेठ ने भी मोदक बहराया था। पूर्व भव के शुभ संस्कार को मोदक मुनिराज को पूरा बहरा दिया। जब मम्मण सेठ ने उस लाडू के चूरे को चखा तो बहुत स्वादिष्ट लगा। विचार नीचे गिरने लगे। मुनिराज से वापस लड्डू लेने जाने का विचार किया।

विवेक का अभाव हो गया। ममण सेठ वापस लडडू माँगने लगा ! मुनिराज ने कहा अब उपाश्रय में आ गया अब देने का विधान नहीं है। यदि मुनिराज के पात्र में सदोष आहार आ गया और एक ही घर का आहार है तो वापिस दे सकते है! यदि दो तीन घर का आहार है सदोष है तो परठने का विधान है। यदि निर्दोष आहार है तो वापिस लोटाने का विधान नहीं है! यदि वह दिक्षा ले ले तो वह पूरा आहार कर सकता है किंतु गृहस्थ को एक दाना भी नहीं दे सकते है!

मम्मण सेठ के याचना करने पर मुनिराज ने लडडू परठ दिया अंतराय डाल दी ! मम्मण सेठ राजगृही का सबसे धनवान श्रेष्ठी था। किंतु वह और उसके परिवार वाले कोई भी उस धन का उपयोग नहीं कर सके। मम्मण सेठ ने अपने परिवार वाले पुत्रो को पालन पोषण के लिए ससुराल भेज दिया और बहुओं को भी यातना दी!

पढ लिख कर नौजवान बेटे वापस लौट आये! बहुत मुश्किल से बेटा की शादी की तो बेटो को धन कमाने भेज दिया न स्वयं भोगा और न परिवार को भोगने दिया। मुनिराज के अंतराय डाली तो स्वयं के भी भोगने में अंतराय लगी। उत्तम कार्य किया है तो मन में प्रसन्नता होनी चाहिए।अहोभाव होना चाहिए। सदाकाल मुनिराज को कल्पनीय आहार ही बहराने की चेष्टा करनी चाहिए। संचालन मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने किया।

प्रशन मंच रखा गया। पांच-पांच की पांच टीम बनाकर प्रतियोगिता रखी गई। मधु बोहरा और नमीता संचेती ने प्रशन मंच में सुन्दर रूप से संचालन किया किया। सभी को विजेताओं को पुरस्कार दिया गया। यह जानकारी अध्यक्ष पारसमल कोठारी ने दी।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar