कोलकाता. श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं – श्रद्धा भी तीन तरह की होती है – सतोगुणी, रजोगुणी एवं तमोगुणी. सात्विक गुण ध्यान, प्राणायाम व सत्संग से आता है. जब तक हम अपना रिमोट दूसरों के हाथ में रखेंगे, तब तक उसी के अनुरूप चलना होगा. सतोगुणी भगवान के करीब होता है. शास्त्र के अनुसार श्रद्धापूर्वक कर्म करने पर आनंद मिलता है. श्रद्धा का अर्थ शास्त्र व गुरु ने जैसा कहा है, उसी के अनुरूप आचरण करना है. ईश्वर को पहले मानना (श्रद्धा) चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए. संसार के विषय में पहले जानें, फिर मानें.
जिसका जैसा अंत:करण होगा, वैसी ही श्रद्धा होगी. हमारे भोजन, संगति, स्वाध्याय, निवास, देशकाल के अनुसार श्रद्धा बनती है. वास्तव में भगवान का कोई सच्चा भक्त है, तो उसके ध्यान मात्र से ही प्रभु का दर्शन हो जाता है. श्रीराम का उपासक गंभीर, शिव का उपासक मस्तमौला, श्रीकृष्ण का उपासक नटखट, हनुमान का उपासक सेवाभावी, मां का उपासक का करुणामय होता है. भगवान से नाता जोड़ने पर उनकी सहज ही कृपा होती है. उपासना करोगे, तो रस आयेगा और ठाकुर तुम्हें सहज ही पकड़ लेंगे.
जैसे चुम्बक लोहे को पकड़ लेता है. मेरे गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद सरस्वती महाराज कहा करते थे कि यह ठीक है कि चुम्बक लोहे को खींचता है, पर जिस लोहे पर जंग लगी होती है, उसे वह खींच नहीं पाता. ये जंग हमारी कामवासनाएं और इच्छाएं हैं. कृष्ण को पाना हो, तो गुरु और ठाकुर के प्रति पूरा समर्पण भाव होना चाहिए. आज जब यह दिखता है कि कोई विदेशी भारतीय परिधान धोती पहन कर हरे राम हरे कृष्ण…. गा रहा है, तो बड़ा अच्छा लगता है.
यह हमारा दुर्भाग्य है कि आज युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में शामिल है. यहां तक कि खान-पान, पहनावा, बोलचाल, शिष्टाचार आदि भूल गयी है. अभिवादन के शब्द भी भूल गयी है. आज युवा हाय बोल कर एक-दूसरे से मिलते हैं और बाय बोल कर परस्पर अलग होते हैं. जबकि होना यह चाहिए कि वे हाय व बाय की जगह जय श्रीराम, जय श्रीकृष्ण, जय माता दी आदि का जयघोष करें. गीता हमारा प्राण है, श्रीकृष्ण की वाणी है. अवसाद के क्षणों में दिया गया यह गीतोपदेश हमारे विषाद को दूर कर देता है. विषाद को हम भगवान से जोड़ दें, तो वह विषाद योग में बदल जाता है.
गीता, विषाद को योग बनाती है. ये बातें गुरुवार को संगीत कलामंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में कलामंदिर सभागार में गीता पर प्रवचन करते हुए स्वामी गिरीशानंद सरस्वती महाराज ने कहीं. इस दौरान प्रसिद्ध उद्योगपति कुमारमंगलम बिरला, मंजू-अरविंद नेवर, विनोद माहेश्वरी, सीताराम भुवालका, सज्जन सिंघानिया, विकास दीवान, दाऊलाल बिन्नानी, महावीर प्रसाद रावत समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे.