चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मुथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि दुनिया गोल है यह कहावत सच लगती है। आदमी घनचक् कर की तरह घूमता रहता है। बैल की आंख पर पट्टी बंधी है वह एक ही जगह घूमता रहता है। वह सोचता है कि बहुत घूम लिया लेकिन आंख की पट्टी खुलने पर पता चलता है कि सब कुछ वही का वही है।
वही घास, चारा और वो ही मालिक। आत्मा बैल की भांति विषय भोग का चक् कर लगाती रहती है। वो ही चार संज्ञाए। सारा संसार इनकी चाहत में सच झूठ कर रहा है। और कर्म सत्ता के इशारे पर नाच रहा है। मंदिर की नीव चौकोर समचतुष्क है और मंदिर गोल है, शिखर का गुबंद कलशाकार है। भगवान इशारा कर रहे है कि मेरे समान विषय भोगो से खुद को दूर करो।
क्रोध, लोभ, मान, माया की चौकड़ी पर जीवन की इमारत खड़ी है और घड़ी के कांटो की तरह तीव्र गति से घूम रही है। आदमी सोचता है कि अकल का ठेका मेरे पास ही है। सबको सलाह देने को तत्पर रहता है। तो भटकना है और प्रज्ञा जाग्रत होती है तो संभलता है। स्त्री की चूडिय़ां गोल, बिंदी की गोल , आदमी की बुद्धि भी गोल है। जब तक इच्छाए गोल यानि शून्य न हो तब तक आदमी घूमता रहता है।
सब गोलमाल है। सब एक दूसरे का माल गोल करते है और गोल करने में लगे है। नेता प्रजा के लिए नहीं अपने लिए जीता है। श्री औ स्त्री सबकी बुद्धि गोल करते है। अत्यधिक धन ऐसी सजा है जिसका जितना धन बढ़ता जाएगा , आदमी भी वृद्ध होता जाएगा। ऐसे वृद्ध व्यक्ति को रोग घेरते जाते है और परिजन उसकी मृत्यु देखने को आतुर हो जाते है। सब गोल है औरएक दूसरे से जुड़े है।