महान दार्शनिक संतश्री ललितप्रभ जी महाराज ने कहा कि संवत्सरी विश्व मैत्री का पवित्र पर्व है। यह भाई-भाई, सास-बहू, देराणी-जेढाणी, पिता-पुत्र और पड़ोसी-पड़ोसी को आपस में बन चुकी दीवारों को हटाकर निकट आने की प्रेरणा देता है। जो व्यक्ति संवत्सरी पर्व मनाने के बावजूद मन में किसी के प्रति वैर-विरोध या थोड़ी-सी भी प्रतिशोध की भावना रखता है उसके सारे धर्म-कर्म-पुुण्य निष्फल हो जाते हैं। धर्म की नींव है टूटे हुए दिलों को जोडऩा एवं जुडऩा। जो धर्म इसके विपरित करता है वह धर्म नहीं मानवता के नाम पर कलंक है।
उन्होंने कहा कि अपरिचित व्यक्ति से क्षमायाचना करना आसान है, पर आपस में कोर्ट केस चलने वाले दो लोगों के द्वारा आपस में क्षमायाचना करना तीस उपवास करने से भी बड़ी तपस्या है। हमसे उससे क्षमा मांगे जिससे हमारी बोलचाल नहीं है ऐसा करना मिच्छामी दुक्कड़म् के पत्र या एसएमएस करने से भी ज्यादा लाभकारी होगा। भगवान को आपके लठ्ठू-फल-मिठाईयां या रुपये नहीं, मन में पलने वाली अहंकार, गुस्सा और ईष्र्या और वैर-विरोध की गांठे चाहिए ताकि वह आपको पापों से मुक्त कर सके।
संत ललितप्रभ गुरुवार को कोरा केन्द्र मैदान में प्रवचनमाला के अंतिम दिन हजारों श्रद्धालुओं को ‘संवत्सरी का रहस्य एवं आलोयणाÓ विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि रूप, धन, पद या उम्र से व्यक्ति बड़ा नहीं होता। बड़ा वही है जो माफी मांगने के लिए दो कदम आगे बड़ा देता है। उन्होंने वर्ष भर में हो चुके हिंसा, झूठ, चोरी, दुशील, परशोषण, ज्ञान व ज्ञानियों की आशातना, परमात्मा का अनादर, दूसरों का दिल दुखाना और क्र ोध,मान, माया, लोभ के वशीभूत होकर हो चुके दुष्कृत्यों की सबको आलोयणा करवाई। आलोयणा करते हुए सभी सत्संगप्रमियों की आँखें भर आई। सभी ने भविष्य में दुष्कृत्य न करने व अपनी आमदनी का एक हिस्सा दीन-दुखियों के नाम करने का संकल्प लिया।
राष्ट्र-संतों के आह्वान पर सत्संगपे्रमियों द्वारा नियमित अन्नदान की व्यवस्था की गई। इस हेतु दान दाताओं ने लाखों रूपये दान की घोषणा की। इस अवसर पर दिव्य सत्संग में लाभार्थी परिवार श्री संपतराज जी चपलोत, किशोरचंद जी डागा, पारसमल जी चपलोत, मनोज जी बनवट, महेन्द्र जी भूतड़ा, सुरेश जी जैन, राजेन्द्र जी, महेन्द्र जी सुराणा, सागरमल जी जैन, पुखराज जी रांका, गणपतलाल जी सिंघवी, जीतू जी रांका, मूलचंद जी जैन, शांतिलाल जी बोहरा, अनिलकुमार जी चोरडिय़ा, संपतजी कुकड़ा, भरत जी मेहता, शंकर जी घीया एवं गौतमचंद जी भंसाली परिवार ने गुरुजनों को कल्पसूत्र आगम समर्पित किया गया। जिसका डॉ. शांतिप्रिय सागर महाराज ने वाचन किया।
सायं 4.30 बजे सभी धर्मप्रेमियों ने सामूहिक प्रतिक्रमण किया। सभी ने एक-दूसरे के पाँवों में झुककर क्षमायाचना की।
पारणा महोत्सव कल- संयोजक संपत चपलोत ने बताया कि कल शुक्रवार क ो सुबह 7.00 बजे कोरा केन्द्र मैदान में 1000 से अधिक तपस्वी भाई-बहिनों का पारणा महोत्सव राष्ट्र-संतों के सान्निध्य में सम्पन्न होगा।