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विवेक रूपी तृतीय नेत्र को जागृत रखें: जयधुरंधर मुनि

विवेक रूपी तृतीय नेत्र को जागृत रखें: जयधुरंधर मुनि
श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जारी नवपद ओली आराधना के अंतर्गत श्रीपाल चरित्र का वांचन करते हुए जयकलश मुनि ने कहा व्यक्ति को अपना विवेक रूप तृतीय नेत्र जागृत रखना चाहिए।
जिसके यह नेत्र जागृत नहीं होता वह दो आंखें होने पर भी एक अपेक्षा से अंधा कहलाता है। कमांध, कोधांध, लोभांध ,मोहांध व्यक्ति इस श्रेणी में आते हैं।
दुर्जन व्यक्ति अपने अवगुणों के कारण स्वयं भी पीड़ित होते हैं और साथ ही दूसरों को भी दुखी कर देते हैं। जो व्यक्ति दुर्जनों की संगत में रहता है उसमें भी वैसे ही अवगुण समाहित होने लगते हैं। दुर्जन को जब अपनी दुष्टता वश किए गए दृश्य कृत्य में सफलता हासिल नहीं होती तो वह और ज्यादा दोस्त बन जाता है।
सज्जन व्यक्ति सभी का प्रिय होता है, जबकि दुर्जन व्यक्ति तिरस्कार, अपमान, अनादर को प्राप्त होता है । दूसरों के द्वारा बहुत समझाने पर भी दुर्जन अपना स्वभाव छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता। जिस प्रकार नीम के वृक्ष को घी और गुड़ से सिंचित करने पर भी उसका कड़वापन दूर नहीं होता वैसे स्थिति एक दुर्जन व्यक्ति की होती है।
जिसका जैसा स्वभाव होता है उसे बदलना इतना आसान नहीं रहता। श्रीपाल चरित्र में धवल सेठ द्वारा श्रीपाल को बार-बार मारने का प्रयास और श्रीपाल द्वारा उन्हें बार-बार बचाने का प्रयास उनकी दूर्ज्जनता और सज्जनता को सिद्ध करता है।
जिसके पुण्यवाणी प्रबल होती है उसका कोई भी बाल भी बांका नहीं कर सकता। मारने वाले से बचाने वाला ज्यादा प्रबल होता है। जो धर्म की शरण में चला जाता है उसकी स्वतः ही रक्षा हो जाती है। धर्म ही जीव के लिए सच्चा आधार है। धर्म की शरण से व्यक्ति का बेड़ा पार हो जाता है।
समणी श्रीनिधि, श्रुतनिधि, सुधननिधि के सानिध्य में 13 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के अवसर पर जयमल जैन पौषधशाला में महिलाओं के लिए 15 सामायिक के साथ रात्रि धर्म जागरण का आयोजन रखा गया  है। 14 अक्टूबर से मुनि वृंद द्वारा उत्तराध्ययन सूत्र का वांचन प्रारंभ किया जाएगा।

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