कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में विराजित जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्रमुनि ने धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज हम यह एकाभवतारी आचार्य सम्राट परम पूज्य श्री जयमलजी म सा की – व श्रमण संघीय आचार्य डॉ श्री शिवमुनिजी म सा की जन्म जयंती मना रहे हैं। जय जाप के साथ, पूज्य श्री जयमलजी म सा का जन्म मरुधरा के शस्य शामला भूमि में सुंदर सा गांव लांबिया में मेहता मोहनदासजी समदड़िया के घर महिमादेवी की कुक्षी से विक्रम संवत 1765 भादवा सुदी 13 के दिन हुआ था। आपके बड़े भाई रीडमलजी थे आपकी शादी रिया के सेठ शिवकरणजी की पुत्री के साथ हुआ था गोना नहीं हुआ था।
एक बार आप मेड़ता व्यापार के लिये गये थे तब वहां दुकानें बंद थी, पूछने पर मालूम हुआ श्री भूधरजी म सा का प्रवचन चल रहा है। जब तक व्याख्यान नहीं हो जाता तब तक मार्केट सब बंद है। आप भी पहुंच गये प्रवचन में, जिसमें ब्रम्हचर्य की महिमा कथानक के साथ सुनकर के वैराग्य हो गया और आपने खड़े खड़े एक ही पहर में प्रतिक्रमण याद कर लिया। माता-पिता भाई-बंधु सभी ने समझाने का प्रयास किया पर दृढ रहे जिसके कारण विक्रम संवत 1787 को मृगशिर बदि दूज को दीक्षा हुई।
आपकी पत्नी लक्ष्मीबाई ने भी आपका अनुसरण करते हुई दीक्षा धारण कि आपने अपने जीवन में अनेक छोटी बड़ी तपस्यायें की आपने बीकानेर क्षेत्र को खोला साथ ही पीपाड़ नागौर जैसलमेर सांचौर खीचन फलोदी सिरोही जालौर आदि क्षेत्रों को खोला था 750 को दीक्षा दी 51 शिष्य 200 प्रशिष्य 499 साध्वियों को दीक्षा दी। 50 वर्ष आड़ा आसन नही किया ऐसे महान आचार्य भगवन को शत शत नमन आचार्य डॉ. शिवमुनिजी म सा पंजाब की धन्य धरा पर मलोट ( मंडी) में तारीख 18.9.1942. के दिन चिरंजीलालजी एवं श्रीमती विद्या देवी के यहां आपका जन्म हुआ यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करते हुवे शिवकुमार नाम रखा गया था।
राष्ट्रसंत श्रमण संघीय सलाहकार श्रीज्ञानमुनिजी म सा ( नोट – मेरे गुरुदेवश्री विमलमुनिजी म सा के परम स्नेही मित्र संत थे इनकेे श्री चरणों में 17 मई 1972 में दीक्षा हुई थी विशेष आपने दीक्षा लेने के पहले ” दर्शन शास्त्र ” में M A किया दीक्षा के बाद भारतीय धर्मों में मुक्ति की अवधारणा में जैन धर्म का विशिष्ट संदेश इस विषय पर P H D की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात विक्रमशिला विश्वविद्यालय कोलकाता से ध्यान एवं दिव्य साधना पर डिलीट की मानद पदवी प्राप्त कर सन्मानित हुवे P H D तथा डिलीट पदवी धारी समग्र जैन समाज में ( दिगम्बर खेताम्बर स्थानकवासी तेरापंथ में )आप ही प्रथम आचार्य हैं।
आपश्री करीब 38 साल से एकांतर की तप साधना करते आ रहे हैं। आपश्री का ज्यादा ध्यान- ध्यानयोग की साधना में ही व्यतीत होता हैं। आपको 13 मई 1987 को पुना सम्मेलन में आचार्य सम्राट श्री आनंदऋषिजी म सा ने युवाचार्य के पद देकर अलंकृत किया। आचार्य श्री देवेंद्रमुनिजी म सा के देवलोक गमन के पश्चात आपश्री श्रमण संघ के आचार्य बने 9 जून 1999 में अहमदनगर महाराष्ट्र में जिसका चादर महोत्सव दिल्ली शहर में मनाया गया था। आप श्री ने दीक्षा के पहले फॉरेन आदी विदेशो में परिभ्रमन किया था ऐसे आचार्य प्रवर श्री को शत-शत वंदन अभिनंदन करते हुवे आपके दीर्घायु की कामना करता हूँ।