किलपाॅक जैन संघ में विराजित आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनि यशस्वीप्रभ विजयजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि ये पांच चीज विश्व को बहुत तकलीफ देती है, पर्यावरण असंतुलन, सामाजिक असंतुलन, संबंध का असंतुलन, शरीर का असंतुलन और आध्यात्मिक असंतुलन। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने और जीवहिंसा के कारण पर्यावरण असंतुलन बनता है। विभाव, दुर्भाव सामाजिक असंतुलन का कारण है। तनाव व रोगों में वृद्धि के कारण अवसाद जैसे रोग उत्पन्न होते हैं। खानपान में असंतुलन भी इसका एक कारण है। उन्होंने कहा पुणिया श्रावक के जैसी आध्यात्मिकता आज देखने को नहीं मिलती। पुणिया श्रावक के सामायिक की प्रशंसा महावीर भगवान ने की थी। लेकिन इसके अलावा परिग्रह परिमाण रखना, साधर्मिक भक्ति करना, आजीवन वर्षीतप और ब्रह्मचर्य पालन करना भी पुणिया श्रावक की विशेषताएं थी।
मुनि ने कहा कि समाधिमरण के दस उपाय बताए गए हैं अतिचार की आलोचना करना, गुरु के समक्ष बारह व्रत धारण आदि करना, सकल जीवयोनि की क्षमापना करना, 18 पापस्थानकों का त्याग करना, चार शरणा स्वीकार करना, पूर्व भव के पापों की आलोचना करना, सुकृतों की अनुमोदना करना, सोलह भावना से भावित होना, पचक्खाण लेकर सोना, सुबह और रात्रि में 7 नवकार का स्मरण करना। उन्होंने कहा वृद्धावस्था में मौन व्रत रखना चाहिए, अपना मन बड़ा रखना चाहिए, मन को शांत रखना चाहिए, मन को ममत्व मुक्त रखना चाहिए, जीवन में सकारात्मकता रखनी चाहिए, जीवन में प्रभु, प्रकृति, पुण्य, परिवार का आभार मानने यानी आभारात्मक सोच आनी चाहिए। उन्होंने कहा अंतिम समय में क्रोध करने वाले नरक में जाते हैं।