अहंकार में व्यक्ति फुल सकता है लेकिन फल नहीं सकता
जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा भाषा स्वयं के लिए वरदान या अभिशाप, यश या अपयश दिलाने वाली हो सकती है। श्रावक के 8 वचन व्यवहार का वर्णन करते हुए कहा श्रावक को अहंकार रहित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। आदेशात्मक वचन बोलने से काम बनने के बदले बिगड़ जाता है ।
एक मालिक अपने नौकर से भी प्रेम पूर्वक बात करके आसानी से सब काम करवा सकता है। विनय युक्त भाषा के प्रयोग से हर प्रकार की वस्तु की प्राप्ति सहज में ही हो जाती है। जहां विनय है वहां विवेक भी जुड़ जाता है । भगवान के बताए हुए सूत्र सिद्धांत के विपरीत बोलने से भी मिथ्यात्व अवस्था तक पहुंच जाता है।
दूसरों के लिए हितकारी भाषा बोलने से स्वयं का भी हित हो जाता है। जयपुरंदर मुनि ने आचार्य जयमल के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनकी संयमी यात्रा का उल्लेख किया और कहा जिस प्रकार भगवान महावीर क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होकर हर प्राणी की रक्षा करने के लिए तत्पर हुए थे , उसी प्रकार उस महापुरुष ने भी हर गांव में विहार करते हुए लोगों के ह्रदय में परिवर्तन लाया।
चांदन की ढाणी का प्रसंग प्रस्तुत करते हुए आचार्य जयमल और उनके साथ 20 और शिष्यों के मरण तुल्य कष्ट का मार्मिक प्रस्तुतीकरण करते हुए उनकी सहिष्णुता एवं उपसर्ग सहन करने की संकल्प शक्ति को दोहराया।
उनकी प्रबल पुण्यवाणी, साधना लब्धि इत्यादि के कारण ही जेठ की तपती हुई गर्मी में ढाणियों में लगी आग अचानक आश्चर्यजनक रूप से आकाश में घने बादलों के आने से, मुसलाधार बारिश होना से बुझ जाती है ।
जिस प्रकार भगवान महावीर ने चंदनबाला के ऊपर 13 अभिग्रह लिए थे उसी प्रकार आचार्य जयमल ने भी एक बार पांच अति कठिन अभिग्रह ग्रहण किए थे लेकिन उनकी अंतराय टूटी होने के कारण वह अभिग्रह अभी सुगमता से पूरे हो गए।
जयमल जैन चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि आचार्य जयमल का 312 वां जन्मोत्सव त्रिदिवसीय कार्यक्रम के रूप में मनाया जाएगा। 13 सितंबर को प्रातः काल 6:00 से साईंकाल 7:00 बजे तक 13 घंटे का अखण्ड जाप आयोजित होगा। उसी दिन रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया गया।