चेन्नई. तप विनय के द्वारा ही बढ़ता है। विनयी व अविनयी के स्वभाव व्यवहार एवं परिणाम एक दूसरे से भिन्न होते हैं। विनय शांति का मूल मंत्र है। जिससे महापुण्य एवं महानिर्जरा होती है।
ताम्बरम में आयोजित प्रवचन के दौरान साध्वी धर्मलता ने कहा कि संसार का भय एवं मोक्ष की इच्छा है तो आगम का अनुशीलन करना होगा। प्रभु महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र के प्रथम अध्ययन में कहा गया है कि विनय जीवन का एक अंग हैं। जिससे ज्ञान परिपुष्ट बनता है। दर्शन दृढ़ बनता है। चारित्र की चांदनी चमक उठती है।
बड़ों का आशीर्वाद एवं खुशियों के बादल भी विनय से बरस उठते हैं। साध्वी ने कहा, उपसर्ग दिए जाते हैं, जैसे संगम ने भगवान महावीर को कष्ट दिए। वह उपसर्ग हैं।