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विनयवान मनुष्य को ही भव मिलता है: उपाध्याय प्रवर रविंद्र मनी

विनयवान मनुष्य को ही भव मिलता है: उपाध्याय प्रवर रविंद्र मनी

कर्मों के संबंध में भगवान और भक्त के बीच संवाद के तीसरे दिन की श्रृंखला प्रज्ञान दयाचंद करते हुए उपाध्याय प्रवर रविंद्र मुनि ने कहा कि जो व्यक्ति विनयवान हो और प्रकृति से सरल हो उसे ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। गौतम स्वामी और भगवान महावीर के बीच कर्म आधारित संवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जो मनुष्य मछली के कड़े आदि पुरानी को तड़पा तड़पा कर मारते हैं उनके शरीर में ही कीड़े लगते हैं। इसलिए व्यक्ति को ऐसा पाप करने से बचना चाहिए।

जो मनुष्य रिश्वत लेकर सच्चे को झूठा सिद्ध करता है। अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए सच को झूठ और झूठ को सच साबित करता है वैसे लोग किसी ना किसी मानसिक पीड़ा का शिकार होते हैं। किसी के बनते काम को बिगाड़ने वाले लोगों के जीवन में हमेशा कोई न कोई बाधा आती रहती है।

पुण्य कर्म प्राणी मात्र पर दया रखने अथवा परोपकार की भावना करने से ऐसे लोगों को मनोवांछित फल प्राप्त होता है। तन मन और वचन से शुद्ध आचरण व का पालन किया हो उसे अगले जीवन में सुख मिलता है। जो व्यक्ति साधु साध्वीयों को श्रद्धा पूर्वक सेवा करते हैं वह अगले जन्म में भव से धन संपन्न रहता है। जिसने भयभीत जीवो को सांत्वना दिया हो आश्रय दिया हो आश्वासन दिया हो वह अभय होता है।

जो व्यक्ति रोगी तपस्वी वृद्ध की सेवा करता है वह व्यक्ति अगले जन्म में बलवान होता है। जिसने अपने समग्र जीवन में झूठ नहीं अंकुश के बचन प्रिय और आनंददायक होते हैं। जिसने अत्यंत श्रद्धा व अभी पूर्वक धर्म की आराधना की हो वह सभी लोगों के लिए प्रिय होता है। जिसने मन वचन काया से अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया हो वह व्यक्ति ही देवी-देवताओं के लिए भी पूजनीय होता है। जो लोग गुप्त दान करते हैं उन्हें ही आकाश में धन का लाभ मिलता है। जो व्यक्ति दूसरों की भलाई का कार्य करता है वह सर्वमान्य होता है।

रविंद्र मुनि जी बताते हैं कि यदि जल स्पर्श से शुद्धि प्राप्ति हो तो पानी में रहने वाले जीव को मोक्ष प्राप्त हो जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि किसी पवित्र नदी में लोग स्नान कर ले तो उससे उन्हें शुद्धि प्राप्त होती है। अगर ऐसा होता तो जल प्राणी जो उस नदी के अंदर रहते हैं तो उन्हें मोक्ष मिल जाना चाहिए।

महाभारत की एक घटना का जिक्र करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि महाभारत की लड़ाई के पश्चात पांडव अपने शुद्धिकरण के लिए देश भर की पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए निकलते हैं। इस कार्य से पहले वह भगवान श्री कृष्ण की का दर्शन करते हैं और उनसे आज्ञा प्राप्त करते हैं।

जब पांडव श्री कृष्ण के पास आज्ञा लेने आए तो श्रीकृष्ण ने उन्हें तुंबा देकर कहा कि तुम जहां जहां जिस दिन नदी में स्नान करोगे इस तुंबे को भी डुबकी लगा देना। पांडवों ने ऐसा ही किया। जब पांडव वापस लौटकर से किस्म के पास आते हैं तो श्री कृष्ण ने उनसे तुंबा लेकर उसे काटकर शब्दों में बांट दिया। सभी ने उसे खाया लेकिन उन्हें यह तुंबा कड़वा लगा।

तब से कृष्ण बताते हैं कि तुमने जो हिंसा की है उसका प्रायश्चित केवल नदी में स्नान मात्र करने से नहीं होता। सिद्धि के लिए जरूरी है कि आप अपने कर्मों का प्रायश्चित करें। जंगल में जाकर साधना तपस्या करें इससे ही सिद्धि प्राप्त होती है।

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