जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में उतराध्ययन सूत्र वांचन का शुभारंभ हुआ ।
इस अवसर पर जयपुरंदर मुनि ने कहा जिनवाणी वर्तमान में 32 आगमों के माध्यम से उपलब्ध है और उन्हीं शास्त्रों में एक मूल आगम उत्तराध्ययन सूत्र है जिसे भगवान महावीर की अंतिम देशना भी कहा जाता है।
इस सूत्र में प्रभु के सिद्धांत, आचार, तत्व, कथा आदि का वर्णन एक साथ मिल जाता है। आगमों के पठन-पाठन एवं सारभूत आचरण से प्राणी के सारे गम मिट जाते हैं तथा सब कर्म भी काटने का एक सरल एवं सहज उपाय प्राप्त हो जाता है।
प्रथम अध्ययन में विनय के सूत्रों का प्रतिपादन करते हुए भगवान ने कहा की अहंकार शून्यता ही विनय है। विनय मुक्ति का प्रथम सोपान है और धर्म का मूल है।
जिस प्रकार जड़ के बिना वृक्ष नहीं टिक सकता, नींव के बिना मकान ध्वस्त हो जाता है, उसी प्रकार विनय के अभाव में धर्म आचरण नहीं हो सकता। विनय धर्म का प्रकटीकरण तभी होता है जब साधक द्रव्य और भाव अर्थात तन और मन दोनों से झुकता है।
विनय व्यवहार, ना केवल शिष्य का गुरु के प्रति अपितु घर परिवार में सास, पिता, भ्राता आदि बड़े बुजुर्गों के प्रति भी होना चाहिए। गुरुजनों की आज्ञा अनुसार और निर्देश अनुसार उनके इंगित इशारों को समझकर उनके निकट रहते हुए एक विनीत शिष्य को उनकी सेवा करनी चाहिए।
विनीत शिष्य सदैव प्रशांत रहते हुए वाचल नहीं बनता। निरर्थक बातों को छोड़ते हुए गुरु के द्वारा अनुशासित किए जाने पर भी विनम्रता से स्वीकार करता है।
विनीत शिष्य का जहां चारों ओर सत्कार होता है, वहीं अविनीत शिष्य सडे कान की कुत्तिया के समान सभी स्थानों से दुत्कार दिया जाता है। विनीत और अविनीत के लक्षणों को समझाते हुए मुनि ने विनय गुण धारण करने की प्रेरणा दी।
प्रातःकाल की वेला में नवपद ओली की आराधना करने वाले तपस्वीयों को संघ की तरफ से सामूहिक पारणा करवाया गया। शरद पूर्णिमा की रात्रि में धर्म जागरण करते हुए 50 से अधिक श्राविकाओं ने 15 सामायिक की आराधना की। वीर निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 15 अक्टूबर से प्रातः 8:00 बजे से प्रतिदिन पुच्छिसुणं का सामूहिक जाप होगा।